जीवन की मूलभूत आवशकताएं शांति,भक्ति और मुक्तिः संतश्री हरिशरण
जयपुर। विद्याधर नगर स्थित शेखावाटी विकास परिषद में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में गुरुवार को संत श्री हरिषरण जी महाराज ने कहा कि नारायण हरि मनुष्य जब अपनी वास्तविक आवश्यकता का अनुभव करता है तब उसे अपने लक्ष्य का भी ज्ञान हो जाता है। जैसे मुझे शांति चाहिए,मुक्ति और भक्ति चाहिए। यह मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है।
उन्होंने आगे कहा कि मानव को अपनी-अपनी आवश्यकता का अनुभव करना चाहिए। मुझे शांति चाहिए,विश्राम चाहिए,प्रेम चाहिए व अमरता जीवन में चाहिए। ऐसी आवश्यकता का अनुभव होने पर इसकी प्राप्ति मंगलमय विधान से स्वतंत्र होने लगती है इसी का नाम कल्याण है। कपिल देवहुति सवांद पर प्रकाश डालते हुए महाराजश्री ने कहा कि देवहूति जी ने पति कर्दम के वन की ओर चले जाने पर पुत्र कपिल के पास आई और प्रार्थना करते हुए बोली कि हे प्रभु हमें संसार के बंधन से मुक्त होने का मार्ग प्रदान करें। मां देवहूति की प्रार्थना को भगवान कपिल ने तत्क्षण स्वीकार किया और ऐसा उपदेश प्रदान किया कि देवहूति जी संसार सागर से मुक्त होकर सिद्धिरा नाम की नदी के रूप में परिणित होकर मुक्त हो गई।
आगे सती चरित्र पर महाराज श्री ने विस्तार से श्रोताओं को श्रवण कराया जिससे कथा प्रांगण का वातावरण शिव मय हो गया। परम भक्त धु्रव जी के चरित्र पर व्याख्यान देते हुए उन्होने कहा कि मात्र पांच वर्ष की अवस्था में धु्रव को दर्शन देकर अखंड राज्य प्रदान करते हुए उनके लिये धु्रव लोक का निर्माण में कर दिया। महाराज श्री ने कहा कि प्रभु के दर्शन के लिए व्यक्ति को सत्संग सेवा सुमिरन में हमेशा लीन रहना चाहिए और अपने को मानव बनाने का प्रयत्न करो तुम यदि इसमें सफल हो गए तो तुम्हे इस कार्य में सफलता निश्चित रूप से प्राप्त होगी। कुसंगति की अपेक्षा अकेले रहना सबसे उत्तम कार्य है।प्रवक्ता रामानंद मोदी ने बताया कि कथा 21 सितम्बर तक रोजाना दोपहर 2.30 बजे से शाम 7बजे तक होगी।