हमारे पास हर कार्य के लिए वक्त पर धर्म के लिए समय नहीं: हिरलप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। संसार में तनाव ही तनाव है लेकिन जो आत्मा में रमण कर लेता है उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते है। अच्छे कर्म करने के साथ जिनवाणी पर श्रद्धा रखना है। शरीर के लिए भोजन आत्मा के लिए धर्म जरूरी है। बिना धर्म ध्यान के आत्मकल्याण नहीं हो सकता। हमारे जीवन में कितनी भी व्यस्तता हो पर यदि उसमें धर्म नहीं है तो वह कभी सार्थक नहीं हो पाएगा। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में बुधवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में तत्वचिंतिका साध्वी समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने पर्वाधिराज पर्युषण के तीसरे दिन ‘‘व्यस्त जीवन में धर्म कैसे करें’’ विषय पर प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। प्रवचन के शुरू में अंतगड़ सूत्र का वांचन आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने किया। प्रवचन में समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म ओर कुछ नहीं वस्तु का स्वभाव है। पानी का स्वभाव शीतलता, अग्नि का स्वभाव गर्म ओर आत्मा का स्वभाव शांति,क्षमा, मैत्री, करूणा, प्रेम, सरलता, समभाव आदि है। आत्मा का अपने मूल गुणों में रहना ही धर्म है। आत्मा अपने स्वभाव को भूल विभाव में जा रही है। तप, त्याग, साधना आत्मा को अपने मूल गुण में लाने का माध्यम है। क्रोध, राग, द्वेष, तेरा-मेरा की भावना ये सभी विभाव है। साध्वीश्री ने कहा कि जिसके मोहनीय कर्म होते है वहीं हंसता-रोता रहता है जिसके यह कर्म क्षय हो जाता है वह इंसान समभाव में रहता है। आत्मा को अपने मूल स्वभाव में लाने के लिए हमे कषाय मुक्त होना होगा। धर्म क्रियाएं आत्मा को उसके मूल स्वभाव में लाने का टॉनिक है। कभी भी ऐसा व्यवहार नहीं करे जिसके कारण कोई हमारे अमंगल की कामना करे ओर बद्दुआ दे। बच्चों को सुधारने के लिए पहले माता-पिता को अपना आचरण एवं व्यवहार आदर्श बनाना होगा। धर्मसभा में तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म आसान ओर जीवन कठिन है लेकिन हम इसके विपरीत जीवन को आसान ओर धर्म को कठिन मानते है। हम जन्म से ही नहीं कर्म से भी जैन बने ओर प्रतिदिन एक नवकार महामंत्र की माला अवश्य फेरने का भाव रखे ओर सुबह उठते व रात में सोते समय भी नवकार महामंत्र का जाप करे। उन्होंने कहा कि धर्म के लिए हमारे अंदर श्रद्धा, समपर्ण एवं विश्वास की कमी है। यह कैसी विडम्बना है कि सब कार्य के लिए समय है पर हमारे पास धर्म के लिए समय नहीं है। हमे धर्म करने के लिए बड़े कार्य करने की जरूरत नहीं हम सुबह उठने से लेकर रात में सोते समय छोटे-छोटे कार्यो से भी धर्म कर सकते है। भोजन ग्रहण करने से पूर्व नवकार महामंत्र का स्मरण करना भी धर्म है। हमारी अज्ञानता के कारण हम एकन्द्रिय व बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करते है। मधुर व सत्य वचन बोलना, अनावश्यक नहीं बोलना भी धर्म है। इस दौरान पूर्व भव में धर्म नहीं करने से व्यथित एक तोते की पीड़ा को भजन ‘‘तोता-तोता इसलिए रोता’’ के माध्यम से सुनाई तो माहौल भावनापूर्ण हो गया। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में लक्की ड्रॉ के माध्यम से 11 भाग्यशाली श्रावक-श्राविकाओं को पुरस्कृत किया गया। पर्युषण के तीसरे दिन प्रार्थना के बाद सुशीलचन्द्रजी बड़ोला, प्रवचन के अंत में अनिलजी ढाबरिया एवं नवकार मंत्र जाप में अनिलजी छाजेड़ परिवार की ओर से प्रभावना का वितरण किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा एवं पदाधिकारियों द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर व आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थे।
ज्ञानलताजी म.सा. की द्वितीय पुण्यतिथि पर गुणानुवाद
धर्मसभा में पूज्य महासाध्वी ज्ञानलताजी म.सा. की द्वितीय पुण्यतिथि पर गुणानुवाद करते हुए तीन-तीन सामायिक की आराधना की गई। मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने उनको भावाजंलि अर्पित करते हुए कहा कि वह ऐसी महान चरित्रात्मा थी जिनके जीवन से कई गुणों को अंगीकार कर हम अपना जीवन सुधार सकते है। उन्होंने कहा कि हर कषाय मिलेंगे पर हम बुराई में अच्छाई को देखना सीखना होगा। हमेशा लघु बनकर जीएंगे तो बड़े हो जाएंगे ओर स्वयं को बड़ा मानने लगेंगे तो छोटा हो जाएंगे।
अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचना
पर्युषण के तीसरे दिन सुबह 8.30 बजे से अंतगड़ दशांग सूत्र के मूल पाठ का वाचन एवं विवेचना पूज्य आगममर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्री म.सा. के मुखारबिंद से हुई। उन्होंने देवकी रानी व गज सुकुमाल से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि शुभ सपना आने पर फिर नींद नहीं निकाले लेकिन बुरे सपने आए तो फिर सो जाए। उन्होंने कहा कि कर्म उदय में आ जाए तो किसी को नहीं छोड़ते है। पूर्व जन्मों के कर्ज चुकाने ही पड़ते है। पर्युषण में धर्म आराधना का जो अवसर मिल रहा है उससे कर्म निर्जरा हो सकती है। ऐसे अवसर किसी को भी नहीं छोड़ने चाहिए। अंतगड़ दशांग सूत्र में आया एक-एक प्रसंग हमे शिक्षा देने वाला ओर जीवन का मर्म समझाने वाला है। पर्युषण अवधि में दोपहर 2 से 3 बजे तक कल्पसूत्र वांचन भी पूज्य तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद हो रहा है। इसमें वह कल्प सूत्र में विभिन्न प्रसंगों को सुनाने के साथ उनके महत्व व प्रभाव के बारे में चर्चा कर रहे है।
पर्युषण में लग रहा जप, तप व साधना का ठाठ
पर्युषण पर्व में रूप रजत विहार में जप, तप व साधना का ठाठ लगा हुआ है। पर्युषण के पहले दिन उपवास करने वाली कई श्राविकाओं ने गुरूवार को तेला तप के प्रत्याख्यान लिए। इसी तरह कई श्रावक-श्राविकाओं ने बेला, उपवास, आयम्बिल, एकासन के भी प्रत्याख्यान लिए। पर्युषण के दौरान कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास, आयम्बिल व एकासन की अठाई करने की भावना रखते हुए कूपन भी लिए है। इस तरह कई श्रावक-श्राविकाएं दिन में 15-18 सामायिक की धर्मसाधना भी रूप रजत विहार में ही कर रहे है। इनमें से कई पोषध की आराधना भी कर रहे है। पर्युषण में अखण्ड नवकार महामंत्र जाप तीसरे दिन गुरूवार को भी जारी रहा। जाप शुरू होने के बाद श्रावक-श्राविकाएं निरन्तर अपने तय समय पर नवकार महामंत्र की आराधना करने में जुटे हुए है। आधी रात के समय भी नवकार महामंत्र की गूंज आसपास रहने वालों को भी भक्ति से जुड़ने की प्रेरणा दे रही है।
प्रतियोगिताओं के माध्यम से धर्म का संदेश
अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व में प्रतिदिन अलग-अलग दिवस मनाने के साथ प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से धार्मिक भावना से ओतप्रोत प्रतियोगिताएं हो रही है। इनके माध्यम से भी भाग लेने वालों को धर्मसंदेश देने के साथ जिनशासन से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। इसके तहत तीसरे दिन गुरूवार को दम्सराज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसमें दो-दो की जोड़ी बनाकर भाग लेना था ओर जैन धर्म से जुड़े जिन चरित्रों के बारे में चिट में पूछा गया उनके बारे में बताना था। इस प्रतियोगिता में श्रावक- श्राविकाओं ने उत्साह से भाग लिया। प्रतियोगिता का संचालन पूज्य समीक्षाश्रीजी म.सा. एवं दीप्तीप्रभाजी म.सा. ने किया। प्रतिदिन प्रतियोगिता के तहत 15 को तीर्थ कर के नाम खोजो, 16 को हाव-भाव प्रतियोगिता, 17 को जैन हाउजी, 18 को दिमागी कसरत (लिखित) प्रतियोगिता होगी।
प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर प्रवचन
पर्युषण पर्व के तहत साध्वीवृन्द द्वारा प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर प्रवचन दिए जा रहे है। इसके तहत पर्युषण पर्व में तीसरे दिन प्रवचन का विषय व्यस्त जीवन में धर्म कैसे करें रहा। इसी तरह पर्युषण के चौथे दिन 15 सितम्बर को खुशहाल परिवार जीवन का आधार, 16 को आधुनिक नहीं आध्यात्मिक बने, 17 को नशा नाश का कारण, 18 को वाणी को मधुर कैसे बनाएं विषय पर प्रवचन होंगे। संवत्सरी पर 19 सितम्बर को मैत्री दिवस एवं सामूहिक क्षमायाचना विषय पर प्रवचन होंगे। संवत्सरी पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजेताओं को पुरस्कृत किया जाएगा। पर्युषण पर्व के दौरान ही 17 सितम्बर को पूज्य प्रवर्तक पन्नालालजी म.सा. की 135वीं जयंति पर भिक्षु दया का आयोजन किया जाएगा। इसी तरह 18 सितम्बर को श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की जयंति पर ध्यान साधना का आयोजन कराया जाएगा।