Saturday, September 21, 2024

“कुंजवान उदगांव” में पदम प्रभु भगवान् के मंदिर का भूमि पूजन संपन्न

मन्दिर भगवान को धन्यवाद देने का पवित्र स्थान है : आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी

औरंगाबाद /उदगाव। भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव मे 2023 का ऐतिहासिक चौमासा चल रहा है। “कुंजवान उदगांव” में छठे तीर्थंकर पदम प्रभु भगवान के मंदिर का भूमि पूजन दिनाँक 13/9/2023 को अंतर्मना गुरुदेव के मंगलमय सानिध्य में संपन्न हुआ। गुरुदेव ने अपनी उपस्थिति में भूमि पूजन की समस्त क्रियाएं विधिवत रूप से संपन्न करवाई। इस अवसर पर गुरुदेव ने प्रवचन देते हुए बताया कि मन्दिर भगवान को धन्यवाद देने का पवित्र स्थान है.. लेकिन हमने उसे मांगने का कार्यालय बना दिया..! आपने कभी ध्यान दिया हो – जब शादी होती है तो लड़का – लड़की की एक बार मांग भरता है और वह लड़की ज़िन्दगी भर पति से मांगती है। आदमी जीते जी औरत की मांग पूरी नहीं कर पाता। जब भी पुरूष घर जाता है तो पत्नी, पति से कहती है – अरे सुनो जी! हमारी मांग पूरी करो, जब पति उसकी मांग पूरी नहीं कर पाता तो पत्नी कहती है – किसने कहा था मेरी मांग भरो – अब भरी है तो पूरी करो और आदमी जीते जी उसकी मांग पूरी नहीं कर पाता। सुख दुःख ओर कुछ नहीं सब मन का समीकरण है।जब मन अच्छा होता है तो घर ही स्वर्ग सा लगने लगता है और जब मन दुखी, परेशान होता है तो घर से बड़ा नर्क ओर कहीं नहीं नजर आता। इसलिए हजारों प्रश्नों का एक ही समाधान है – मन। मानव का मन किसी प्रयोग शाला से कम नहीं है। आदमी का मन समुद्र की लहरों की तरह होता है, जिसमें इच्छायें लहरों की तरह नृत्य गान करती रहती है। मन चन्द्रमा की तरह घटता बढ़ता रहता है – कभी अच्छा, तो कभी बुरा सोचता रहता है, कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक विचारों से भर देता है। आज के मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह गलत जल्दी सोचने लगता है और वैसे भी आदमी अपनी औक़ात से ज्यादा सोचता है।किसी विचारक ने क्या खूब लिखा- हम मनुष्य है, इसलिए सोचते हैं, यदि गधे होते तो नहीं सोचते। आचार्यों ने मन के दस लक्षण बताये हैं, जिसमें उसे बन्दर सा चंचल और और अंगद के पैर सा अडिग बताया है। संसार के सारे संकल्प और विकल्प मन से ही संचालित होते हैं, इसलिए एक मन को साधो तो सब कुछ सहज हो जायेगा, अन्यथा यह मन जीना हराम कर देगा।
संकलन: नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल

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