राजेश जैन दद्दू/बड़ोत। जो दिख रहा है वह सत्य हो यह जरूरी नहीं है। और जो नहीं दिख रहा है वह भी ना हो यह आवश्यक नहीं है। सुगंध होती है पर दिखती नहीं, आत्मा होती है पर दिखती नहीं। हमारे पूर्वज दिखाई नहीं दे रहे पर वह थे। यह उद्गार सोमवार को आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर कैनाल रोड बड़ोत में धर्म सभा में प्रवचन देते हुए व्यक्त किये। आचार्य श्री ने आगे कहा कि साधक जितना परिचय बढ़ाएगा वह उतना साधना से पतित होता चला जाएगा। अंतर्मुखी दृष्टि ही श्रेष्ठ है। जब जब हम बाहय में प्रवृत्ति करते हैं तब तब चित्त अशांत होता है और जो समीचीन विचारशील होता है वह विकास प्राप्त करता है विचारों की पवित्रता के अभाव में विनाश ही होता है। विचारों से ही व्यक्ति महान बनता है, विचार ही हमें विकास की राह दिखाते हैं। विचार हमारी संस्कृति के परिचायक होते हैं। सर्वथा निमित्तों को दोष नहीं देना चाहिए। निमित्त तो सर्वत्र हैं। पर मानव निमितों के अनुसार विचारों से प्रभावित होता है, निमित्तों के पास व्यक्ति स्वयं पहुंचता है और विचारों के अनुसार साधन एकत्रित करता है। अपने विचारों को संभालो निमित्त कुछ नहीं कर पाएंगे। गुणी ही गुणवानों की महिमा गाते हैं अतः गुणग्राही बनो। जैसी तुम्हारी दृष्टि होगी वैसी ही तुम्हें सृष्टि दिखाई देगी। परिणाम की विशुद्धी बढ़ाओ और अशुद्धि के कारण हटाओ। हमेशा ऐसे कार्य करो जिससे विशुद्धि बड़े और ऐसे कार्य मत करो जिससे विशुद्धि घटे और अपयश मिले। दृष्टि पवित्र करो। उपादान सशक्त होता है और निमित्त तटस्थ होता है पर पर से प्रभावित मत होना, माया छोड़ो महात्मा बनो।यश चाहिए तो साधुओं की सेवा करो, धनवान बनना है तो स्वयं के द्रव्य का दान करो,स्वस्थ रहना है तो शाकाहारी भोजन करो और कर्मक्षय करना है तो तप करो और मुक्ति प्राप्त करना है तो निरग्रंथ तपस्वी बनो। प्रारंभ में आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन करने का सौभाग्य धर्म सभा में उपस्थित इंदौर के वरिष्ठ समाजसेवी आजाद कुमार बीडी वाले, डॉक्टर जैनेंद्र जैन, पंडित विजय कुमार शास्त्री मुंबई ने किया। धर्म सभा का संचालन पंडित श्रेयांश प्रसाद जैन ने किया।