यात्रा अंतिम पड़ाव पर है ।
डर मत, चलता चल,
यह तो बस अब तेरे पांव पर है।
पांवों के छालों को अब तो भूल,
ये तो बस अब मंजिल तक
के सफर की मात्र है,धूल
अपनी मेहनत पर भरोसा रख,
देख जरा उन पहाड़ों की और,
लगता है जैसे प्रकृति भी,
अब नए बदलाव पर है।
यात्रा अंतिम पड़ाव पर है।
उलगुलान का बिगुल बजा दे,
जीत तो बस तेरे अगले दांव पर है।
माना की अंधकार घना है,
पर प्रकाश का मार्ग भी तो,
अब उस पार तना है।
यात्रा अंतिम पड़ाव पर है।
डॉ. कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार