जयपुर। गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने धर्मसभा में यात्रीगणों को संबोधन देते हुए कहा कि – जिस प्रकार दूध में घी, बालपने में वृद्धपना एवं बीज में वृक्ष और फल छिपा रहता है। उसी प्रकार भक्ति में भक्ति का फल छिपा होता है। भाव सहित भक्ति करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। माताजी ने कहा – संतों एवं भगवंतों की सेवा करने से, उनके निकट रहने से पाप कर्म कटते हैं, रोग नष्ट होते हैं और उत्तम भोगभूमि, स्वर्ग मोक्ष प्राप्त होता है। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी के तत्वावधान में श्रीमान राजकुमार जी जैन मालपुरा वाले एवं सन्तोष जी गायत्री नगर जयपुर वालों ने मिलकर श्री 1008 शांतिनाथ महानुष्ठान रचाया। गुरु माँ के सान्निध्य में 120 अर्घ्यों के साथ आहुति देकर विधान का समापन किया गया। विश्वशांति हेतु सभी भक्तों ने शांतिप्रभु के समक्ष शांति मन्त्र का जाप किया। प्रातःकालीन अभिषेक, शान्तिधारा देखने एवं करने हेतु जयपुर, कोटा, झांतला, मालपुरा, टोंक, निवाई, चाकसू वालों ने भाग लिया। शांतिनाथ भगवान का प्रथम अभिषेक करने का सौभाग्य कमल कुमार मालपुरा वालों ने प्राप्त किया। तत्पश्चात गुरु मां के कर कमलों में शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य चातुर्मास पुण्यार्जक कर्ता परिवार ने प्राप्त किया। इसी दौरान सभी भक्तों ने गुरु मां के पाद प्रक्षालन एवं आहार चर्या संपन्न कराई। जयपुर विवेक विहार समाज ने गुरु मां का वात्सल्य एवं आशीष पाकर स्वयं को धन्य किया। तीर्थ क्षेत्र पर चल रहे विविध प्रकार के आयोजन एवं अनुष्ठानों का लाभ यात्री गणों ने लिया।