गुंसी, निवाई। भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका 105 विज्ञाश्री माताजी ने प्रवचन में भव्य जीवों को संबोधन देते हुए कहा कि – जिस प्रकार समुद्र के मंथन से सारभूत अमृत एवं दधि के मंथन से सारभूत घृत उपलब्ध होता है, उसी प्रकार आगम का सारभूत णमोकार मंत्र है। जिस प्रकार जल में छिपी हुई विद्युत शक्ति जल के मंथन से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार मंत्र के बार-बार उच्चारण करने से मंत्र में छिपी शक्तियां विकसित हो जाती है। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी के तत्वावधान में जन्माष्टमी के पावन अवसर पर नेमीचंद माधोपुरिया चाकसू वालों ने श्री 1008 शांतिनाथ महामंडल विधान का आयोजन किया। आर्यिका माताजी के ससंघ सान्निध्य में अष्टद्रव्य का थाल सजाकर मंडल पर 120 अर्घ्य चढ़ाये गये। तत्पश्चात भक्तिभावों के साथ विधान कर्ता परिवार ने शांतिनाथ भगवान की मंगल आरती की। शान्तिधारा कर्ता परिवार प्रदीप अजमेरा, विज्ञान नगर कोटा, मनोज जैन झांतला एवं नन्दलाल जी ककोड़ वाले निवाई, संजय सौगानी लुहारा वाले निवाई वालों ने पुण्यार्जन किया।