गुंसी। गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने प्रवचन के दौरान भव्यात्माओं को संबोधन देते हुए कहा कि मोती बनने की जगह आप धागा बन जाना क्योंकि धागे में ही पिरो कर रखने की क्षमता होती है मोतियों में तो बिखर जाने की आदत होती है। वेद पढ़ना सरल है लेकिन किसी की वेदना को पढ़ना बहुत कठिन है। जीवन कितना जिया यह महत्वपूर्ण नहीं है, किस भावना से जिया यह महत्वपूर्ण है। बैर भाव से बैर बढ़ता है और मैत्री भाव से मित्रता बढ़ती है। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी के तत्वावधान में श्री 1008 शांतिनाथ महामण्डल विधान रचाने का सौभाग्य प्रकाशचन्द नरेणा वाले मांग्यावास, जयपुर वालों को प्राप्त हुआ। जिन चैत्यालय के शांतिनाथ भगवान की शान्तिधारा करने का सौभाग्य सुनील जी कोटा, अशोक कटारिया निवाई, पवन जी सेठी चौमूंबाग जयपुर वालों को प्राप्त हुआ । सकल दिगम्बर जैन समाज चौमूंबाग जयपुर एवं टीकमचंद दूदू वालों ने गुरु माँ की आहारचर्या कराने का सौभाग्य प्राप्त किया।