आगरा। हरीपर्वत स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अमृत सुधा सभागार में निर्यापक मुनिपुगंव श्री सुधासागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन को संबोधित करते हुए हर अच्छी वस्तु सभी के लिए ग्रहण करने योग्य हो ये कोई नियम नही, हर कष्टदायी वस्तु त्यागने योग्य हो ये कोई नियम नही। कोई भी वस्तु को हेय कहना अलग चीज है और त्यागना अलग चीज है। संसार के कितने कार्य है जो हेय है लेकिन त्यागने योग्य नही, मोक्षमार्ग में व्यवहार हेय है लेकिन त्यागने योग्य नही और कुछ कार्य ऐसे है जो ग्रहण भी करना है और छोड़ना भी है। लोगो ने ये धारणा बना ली है कि जिन जिन कार्यो में कष्ट होता हो वो सब छोड़ देना चाहिए, कितनी धर्म की क्रियाएं आप मात्र इसलिए नही करते क्योंकि उसमें कष्ट है, जानते है ये धर्म है अच्छा है, करना चाहिए लेकिन तुम्हे लगता है कि कष्ट है इसमे। पहले 99% महिलाएं कोई न कोई व्रत किया करती थी, पूरे जीवन मे एक न एक व्रत चलना चाहिए। गर उपवास से नही बनते है कुछ अल्पाहार ले लेवे, उससे भी नही बनते है तो एकासन से करेगे लेकिन व्रत करेगे। कल मरना ये निश्चित है लेकिन मरने का भाव भी करना निंदनीय है। कष्टदायी वस्तु का फल कष्टदायी हो ये कोई जरूरी नही, भोजन बनाना कष्टदायी है लेकिन भोजन करना सुखदायी। संसार के कितने कार्यो में आपको कष्ट है, कमाने में, खेती में लेकिन आपको उस कष्ट की खेती में सुख की लहराती हुई फसल दिख रही है। संसार मे क्या, परमार्थ में क्या बिना कष्ट के सुख मिल ही नही सकता। कमाने में कष्ट दिख रहा है लेकिन इनकम भी अच्छी हो रही है, किसान खेत मे मेहनत करता है और मेहनत करने में बहुत कष्ट है इसका अर्थ है हमारा भविष्य उज्ज्वल है। महावीर भगवान ने हम साधुओं को जिन जिन कार्यो में मौत है वो सब बंद करवा दिया,गाड़ी में मौत है तो पैदल चलने का उपदेश दे दिया, जहाँ जहाँ मौत है वो सब हम छोड़ देते है क्योंकि हम साधुओं की दृष्टि में हमारी जिंदगी बहुत मूल्यवान है। लोग मुझे तीन लोक का राज्य भी दे दे तो मैं उसे अपने मुनिपद के सामने धूल समझूँगा,इतना अनमोल है ये मुनिपद, मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूँ मेरे बराबर कोई बादशाह नही इसलिए हमारा नाम राजा नही, महाराजा है। फकीरी की तो ऐसी की कि सबकुछ गमा बैठे और अमीरी की तो ऐसी की सबकुछ लुटा बैठे। सुख में जो आनंद उठाता है वो भोगी है और कष्ट में जिसको आनंद आता है वो योगी है। प्रतिकूल परिस्थितियों में आनंद आये। प्रशंसा हो रही हो तब आनंद की अनुभूति होना ये भोगियों का लक्षण है, गलियाँ मिल रही है और आनंद आ जाए ये योगी का लक्षण है। राम जी ने वनवास के लौटने के बाद सबसे पहले माता केकयी के चरण छुए और कहते है माता केकयी की बदौलत है जो मैं 14 वर्ष में धर्म का पालन करके लौट रहा हूँ, ये है महान आत्माएं दुश्मनी में मित्रता की अनुभूति। माता केकयी को अतिशयकारी मानना ये हर व्यक्ति के वश की बात नही है, ये श्री राम जैसी महान आत्मा की बात है। डॉक्टर की दृष्टि में रोग और गुरु की दृष्टि में दोष आ जाये तो समझना नियम से अच्छे दिन आने वाले है जिस दिन कष्टों में तुम्हे सुख की अनुभूति हो जाए। धर्मसभा का शुभारंभ कृति जैन एण्ड ग्रुप छीपीटोला की बालिकाओं ने भक्ति गीत पर सुंदर मंगलाचरण की प्रस्तुति के साथ किया| इसके बाद सौभाग्यशाली भक्तों ने संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चित्र का अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया,साथ ही भक्तों ने गुरुदेव का पाद प्रक्षालन एवं शास्त्र भेंटकर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया| इस दौरान श्री दिगंबर जैन धर्म प्रभावना समिति, आगरा दिगंबर जैन परिषद एवं बाहर से आए हुए गुरुभक्तों ने गुरुदेव के चरणों में श्रीफल भेंट किया| धर्मसभा का संचालन मनोज जैन बाकलीवाल द्वारा किया| धर्मसभा में प्रदीप जैन पीएनसी,निर्मल मोठ्या,मनोज जैन बाकलीवाल नीरज जैन जिनवाणी, पन्नालाल बैनाड़ा,हीरालाल बैनाड़ा, जगदीशप्रसाद जैन,राकेश जैन पर्देवाले राजेश जैन सेठी,ललित जैन,आशीष जैन मोनू मीडिया प्रभारी शुभम जैन, मीडिया प्रभारी,राजेश सेठी,शैलेन्द्र जैन,राहुल जैन,विवेक बैनाड़ा,अमित जैन बॉबी,पंकज जैन, मुकेश जैन अनिल जैन शास्त्री,रूपेश जैन,केके जैन,सचिन जैन,दिलीप जैन,अंकेश जैन,सचिन जैन,समस्त सकल जैन समाज आगरा के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
शुभम जैन मीडिया प्रभारी