Saturday, November 23, 2024

जिंदगी में ‘महाभारत’ से बचना है तो मत उड़ाओं किसी की हंसी: इन्दुप्रभाजी म.सा.

मिथ्यात्व का नहीं करें पोषण, अपने धर्म व सिद्धांतों पर रखे विश्वास-चेतनाश्रीजी म.सा.

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। धर्म ध्यान व साधना करने के लिए आत्मा एवं शरीर दोनों का मिलना एवं उनमें आपसी समन्वय होना आवश्यक है। बिना शरीर को पाए केवल आत्मा के सहारे भी धर्म नहीं हो सकता। जीवात्मा का उद्धार आत्मा से ही होता है। शरीर आत्मा के लिए कार्य करने का एक माध्यम है इसलिए उसे स्वस्थ रखना चाहिए। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में सोमवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीवन में कभी किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए। हंसी उड़ाने से आपसी मनमुटाव होता है। रोग का मूल खांसी ओर लड़ाई का मूल हंसी होती है। इस हंसी उड़ाने के कारण ही ‘महाभारत’ हो गया था। साध्वीश्री ने कहा कि त्याग व संयम लेने वालों का गुणगान जगत करता है। संसार छोड़ना आसान नहीं है हर कोई संयमी आत्मा नहीं बन सकता। आत्मा का उद्धार संयम लेने पर ही होता है। हमे किसी भी हालत में भाषा का विवेक नहीं खोना चाहिए। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह अयोध्या में ऋषभदेव का राज होता है। ऋषभदेव से लेकर रामचन्द्रजी तक सूर्यवंशी कहलाए। पुरन्दर के पुत्र हुआ जिसका नाम कीर्तिध्वज रखा गया। इसके बाद पुरन्दर पत्नी के साथ संयम अंगीकार कर लेते है। पुरन्दर का उपदेश सुन एक दिन कीर्तिध्वज को भी वैराग्य आ जाता है। वह पत्नी के गर्भ में ही पुत्र का राजतिलक कर संयम स्वीकार कर लेता है। समय आने पर उसके सुकौशल नाम का पुत्र होता है। बड़ा होने पर उसका विधिवत राजतिलक हो जाता है। एक दिन कीर्तिध्वज उसी राज्य में आहार लेने के लिए पधारते है तो रानी देख लेती है उसे लगता कहीं पिता से मिल पुत्र को भी वैराग्य न आ जाए इसलिए वह पहरेदारों से बोल कीर्तिध्वज को नगर से बाहर निकलवा देती है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में सभी को परिवार सहित अधिकाधिक धर्म साधना करनी है। तपस्या व सामायिक के रूप में भी साधना कर सकते है। सामायिक में मन,वचन व काया की भागदौड़ बंद हो जाती है। उन्होंने आठ प्रकार की आत्माएं बताते हुए कहा कि कोई कर्म घटाती है तो कोई कर्म बढ़ाती है। जहां-जहां जीवन्तता है वहां.वहां आत्मा है चाहे वह जीवित नाखुन ही क्यों न हो। सुननी सबकी चाहिए लेकिन हमेशा अपने धर्म व सिद्धांतों पर विश्वास रखना चाहिए। सभी संस्कृतियां अलग.अलग होती है। हमारी संस्कृति केवल ज्ञान वाली है। हमे मिथ्यात्व का पोषण नहीं करना है। साध्वीश्री ने माला फेरने के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि ये समझना होगा कि माला किस तरह फेरी जानी चाहिए। जाप करने से पहले णमो सिद्धांण की माला फेरने से जाप सिद्ध होते है। बिना श्रद्धा व आस्था के आराधना नहीं हो सकती चाहे हाथ से कितनी भी माला फेरते रहो। तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने प्रेरणादायी भजन की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा.,आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। गुलाबपुरा से पधारे श्रावक सतीश कांकरिया ने भजन की प्रस्तुति दी। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर एवं आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे श्रावक.श्राविकाएं मौजूद रहे।

पर्युषण में आठ दिन सभी करें जप, तप व भक्ति आराधना

रूप रजत विहार में 12 से 19 सितम्बर तक मनाए जाने वाले पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की तैयारियां शुरू कर दी गई है। इस दौरान प्रवचन के साथ जपए तप व भक्ति से परिपूर्ण विभिन्न आयोजन होंगे। पर्युषण अवधि में रूप रजत विहार स्थानक में अखण्ड नवकार महामंत्र जाप का आयोजन होगा। इसमें अधिकाधिक श्रावक.श्राविकाओं की सहभागिता के लिए प्रयास किए जा रहे है। पर्युषण अवधि में तपस्या ओर सामायिक के लिए डायमण्ड, गोल्डन व सिल्वर कूपन भी जारी किए जाएंगे। प्रत्येक श्रावक.श्राविका को कोई न कोई कूपन अवश्य प्राप्त करना है इसकी प्रेरणा साध्वीवृन्द द्वारा दी जा रही हैै। इसके तहत पर्युषण में उपवास की अठाई पर डायमण्ड, आयम्बिल की अठाई पर गोल्डन व एकासन की अठाई पर सिल्वर कूपन मिलेगा। इसी तरह पर्युषण अवधि में 108 सामायिक पर डायमण्ड, 81 सामायिक पर गोल्डन एवं 51 सामायिक पर सिल्वर कूपन मिलेगा।

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