आगरा। निर्यापक मुनिपुगंव श्री सुधासागर जी महाराज ने आगरा के हरीपर्वत स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अमृत सुधा सभागार में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कुछ क्रियाएं ऐसी होती है जो देखने मे एक समान लगती है लेकिन अंतर बहुत होता है।ऋण और सहयोग में यदि दो मिले,तो ऋण ले लेना,सहयोग नही लेना। ऋण भी अच्छा नही है, ऋण लेकर जिंदगी जीना कोई जिंदगी नही है और ऋण लेने वाला व्यक्ति कभी भी सुख की नींद सो ही नही सकता। दुनिया कितनी चलती है, हवाएं भी कभी कभी रुक जाती है लेकिन ऋण लेने के बाद जो ब्याज चलता है वो कभी रुकता नही है, दिन-रात चलता है। कई बार तो मूल से ज्यादा ब्याज हो जाता है। जब तुम्हारे बुरे दिन चल रहे हो, जब किस्मत साथ न दे रही हो तो पूरी ताकत लगाओ की ऋण न लेना पड़े, मजदूरी करना पड़े तो कर लो, भींख मांग कर के काम चलाना पड़े तो चला लो, क्योंकि भींख की रोटी में करुणा होती है और ऋण लेने वाला व्यक्ति निर्दय होता है। प्याज से ज्यादा खतरनाक दोष ब्याज में है। क्योंकि ब्याज का पैसा देने वाला व्यक्ति कभी करुणावान नही हो सकता। डॉक्टर दूसरा भगवान है चाहे तो इतना पुण्य कम सकता है कि तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लेता है और इसके लिए साधु को तपस्या करना पड़ता है।एलोपैथिक की ये कूटनीति है कि एकबार मरीज आ जाये तो जिदंगी में उसकी दवाई बंद नही होना चाहिए, एक भी दवाई साइड इफेक्ट के बिना नही बनाई। तलवार के नीचे आया व्यक्ति एक क्षण में मर जाता है लेकिन ब्याज की कलम के नीचे आना वाला व्यक्ति जिंदगी क्या पीढियां निकल जाती है। किसी से ली हुई वस्तु को चुकाने के भाव तुम जितनी बार करोगे उतनी हर बार तुम्हारी दरिद्रता कम होगी और समृद्धि की तरफ बढ़ोगे। चौबीस घण्टे ऋण चुकाने की जरूर चिंता करना, बस एक ही टेंशन है मुझे ऋण चुकाना है, उस परिस्थिति में उसने मुझे ऋण दिया था, कैसे भी करके चुकाना है। बस जितना तुम ऋण चुकाने की टेंशन करोगे उतना ही तुम अमीरी की तरफ बढ़ोगे। कर्जा चुकाने का भाव पाप नही है, अधर्म नही है लौकिक धर्म है, नैतिक धर्म है, नैतिक धर्म मे भी पुण्यबन्ध बंधता है। किसी ने किसी का कर्जा लिया हो तो महानुभाव आज से ही कभी मना मत करना मैं नही दूँगा, कर लो क्या करना है, मत करना। जायदाद बिके तो बेंच दो,तुम स्वयं बिको तो बिक जाओ,लेकिन किसी ने तुम्हारे लिए जरूरत पर कर्जा दिया है कभी मन मे भी भाव नही लाना क्या कर लेगा वो दो नम्बर का पैसा है। एक ही भाव करना मुझे कर्जा देना है| क्षमा मांगो, पैर पड़ लो ,उसके यहां दास बन जाओ, उनके जूते पर पालिश करना पड़े तो कर दो लेकिन कभी भी ऋण को न देने का भाव मत करना, जैसे बने ऋण दूँगा, जितना तुम ऋण देने का टेंशन करोगे उस समय तुम्हे अमीरी नामकर्म का पुण्य बन्ध हो रहा है। शुभम जैन आगरा ने बताया की धर्मसभा का संचालन मनोज जैन बाकलीवाल द्वारा किया गया| इस दौरान मुनि श्री के चरणों में बाहर से आए हुए गुरुभक्तों ने श्रीफल भेंटकर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया|धर्मसभा में प्रदीप जैन पीएनसी,निर्मल मोठ्या, मनोज जैन बाकलीवाल नीरज जैन जिनवाणी पन्नालाल बैनारा, हीरालाल बैनाड़ा,जगदीश प्रसाद जैन,राजेश जैन ललित जैन,मीडिया प्रभारी आशीष जैन मोनू,राजेश सेठी,शैलेन्द्र जैन, राहुल जैन,शुभम जैन,राकेश जैन बजाज,अमित जैन बॉबी, पंकज जैन,मुकेश जैन,समकित जैन,अनिल जैन शास्त्री,रूपेश जैन,केके जैन, सचिन जैन,दिलीप कुमार जैन,विवेक बैनाड़ा,अंकेश जैन,सचिन जैन,समस्त सकल जैन समाज आगरा के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी