Saturday, September 21, 2024

अपने जीवन मे संकल्प करो कि मैं सदा धर्म और धर्मात्माओ की रक्षा करूँगा क्योंकि धर्मात्माओ के बिना धर्म कंही टिकने वाला नही है: निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज

विनोद छाबड़ा/आगरा। आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य जगतपूज्य निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के मंगल सानिध्य में डेढ़ लाख से अधिक श्रीफलों द्वारा हुई वात्सल्य पर्व पर अकंपनाचार्य आदि सात महामुनिराजों की पूजन। इस अवसर पर पूज्य मुनि श्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कुछ लोग महान पुरूष ऐसे होते है जिन महानपुरुषों की चेष्टाएँ स्वयं का तो कल्याण करती ही है साथ ही सारे जगत का कल्याण करती है। कुछ वस्तुये ऐसी है जो स्वयं के लिए सुख तो देती है लेकिन जो दूसरों के लिए भी कल्याण करती है ऐसे भी दिन आते है। कुछ महापुरुषों की घटनाएं पर्व और त्यौहार का रूप ले लेते है। जब भी कोई शुभ समाचार मिले तो उसको अपने तक छुपाकर नही रखना चाहिए, तुरंत उसको जितना ज्यादा प्रचार हो सके करना चाहिए। मुनियों का दर्शन सदा मंगलकारी होता है, शगुन होता है। संवाद सज्जन लोगो से किया जाता है, दुष्टों से नही। शिक्षा दुष्टों को नही, सज्जनों को दी जाती है। एक नीति है कि दुष्ट कभी भी हो, वह दुष्ट अपना गुस्सा जो प्रथम मिलता है उस पर उतारता है, सांप यदि कभी आपका पीछा करे तो आप अपने शरीर का एक कपड़ा उतार दीजिए, फेंक दीजिये, रस्ते में उस कपड़े को वो चिथड़े चिथड़े कर देगा, उसका गुस्सा शान्त हो जाएगा। सज्जन और दुर्जन की पहचान होती है। कौन सज्जन है कौन दुर्जन है इसके लिए, सज्जन पुरूष जब बड़ो के द्वारा अपमान होता है तो उसे वो सम्मान मानता है। बड़ो से हारना अपमान नही है सम्मान है। आप सज्जन है या नही। आप खुद फैसला करे। कभी आपके पिताजी गाली दे दे, यदि आपको गाली बुरी लग रही है तो आप दुर्जन बेटे है और पिता ने गाली दी है, आपको यहाँ ऐसा लग रहा है कि आपको गाली नही दी है मेरा सम्मान किया है तो आप सज्जन बेटे है। जो जो आपके बड़े है, पूज्य होते है उनके द्वारा किया हुआ अपमान तुम्हे सम्मान लगना चाहिए तो तुम सज्जनता की कोटि में आते हो। यदि बड़ो की डांट कभी बुरी लगे तो महानुभाव आज गांठ बांध लेना तुम सबसे बड़े दुर्जन आदमी हो, तुम्हारा कल्याण नही हो सकता। दुष्ट बड़ो का अपमान बढ़ाने पर खुश होता है और स्वयं का अपमान होने पर रुस्ता है। दुष्ट की पहचान- बड़ो से जब अपमान होता है तो बुरा लगता है और बड़ो का जब अपमान होता है तो अच्छा लगता है। अनजाने को, स्त्री को, बालक को, मूर्ख को कभी किमिच्छक वरदान नही दिया जाता। अपने जीवन मे संकल्प करो कि मैं सदा धर्म और धर्मात्माओ की रक्षा करूँगा क्योंकि धर्मात्माओ के बिना धर्म कंही टिकने वाला नही है।

✍🏻संकलन- शुभम जैन ‘पृथ्वीपुर’

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article