Sunday, November 24, 2024

दीवान अमर चन्द जी की अहिंसक पुकार

हीरा चन्द बैद
धर्म नगरी जयपुर के दिगम्बर जैन समाज का ऐसा विरला ही व्यक्ति होगा जिसने दीवान अमर चन्द जी का नाम नहीं सुना हो।
जयपुर में इन्ही दीवान जी के नाम से अनेक विशाल कलात्मक दिगम्बर जैन मन्दिर, नसियां व धर्मशाला है।
संवत 1860 से 1892 तक जयपुर राजदरबार के प्रतिष्ठित दीवान पद पर थे अमर चन्द जी।
दिगम्बर जैन पाटनी गोत्र के अमर चन्द जी अपनी ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा के कारण दरबार (राजा)
के खास सलाहकारों में सबसे अग्रणी व विश्वसनीय व्यक्ति थे।
दीवान जी अपने दिगम्बर जैन धर्म के सच्चे आराधक होने के साथ ही नियमपूर्वक श्रावक के आवश्यक नियमों का पालन करते थे।
हर जगह अमर चन्द जी जैसे ‌प्रगतिशील व्यक्तियों के प्रति द्वैषता रखने वाले व्यक्तियों की कमी नहीं होती है, ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठ व्यक्ति को हमेशा नीचा दिखाने के लिए अवसरों की तलाश में रहते हैं।
एक बार राजा ने दरबार में कहा कि हम आगामी तीसरे दिन शिकार पर जायेंगे।
यह सुनकर अमर चन्द जी से द्वैषता रखने वालों की तो मानो बांछे खिल गई हो, ये लोग तो अमर चन्द जी को सदैव राजा के सामने नीचा दिखाने के अवसरों की बाट जोहते थे।
अगले दिन दरबार में उन्होंने राजा से कहा कि हुकुम कल आप शिकार खेलने जायेंगें परन्तु आपके साथ हमेशा शिकार पर जाने वाले मंत्री जी अपनी बेटी के विवाह के लिए अवकाश पर हैं अतः आप शिकार पर जाने का कार्यक्रम स्थगित करदें या दीवान अमर चन्द जी को साथ लेजावें।
राजा ने भरे दरबार में अमर चन्द जी की ओर देख कर कहा दीवान जी कल आपको हमारे साथ शिकार पर मोती डूंगरी चलना है ।
दीवान जी ने कहा हुकुम आप अन्य किसी को साथ लेजावें क्योंकि ऐसे हिंसात्मक कार्य में मैं नहीं चल सकता। राजा ने पुनः दरबारियों से कहा कि अमर चन्द जी जैन है ये नहीं जायेंगें अतः कोई और हमारे साथ शिकार पर चलें।
दरबारियों ने कहा सरकार दीवान साहब हर कार्य में दक्ष है अतः इन्हें ही अपने साथ शिकार पर लें जावें ओर फिर अमर चन्द जी को कौनसा शिकार करना है, उन्हें तो आपके साथ ही रहना है।
इस बात पर राजा ने अमर चन्द जी से कहा कि सभी की सलाह है कि दीवान साहब ही हमारे साथ शिकार पर चलेंगे अतः आप ही कल समय पर दरबार में उपस्थित हो।
अमर चन्द जी से द्वैषता रखने वाले सभी दरबारी राजा के इस आदेश से बहुत खुश हो रहे थे कि आज आया है ऊंट पहाड़ के नीचे।
अमर चन्द जी किंचित भी विचलित नहीं हुए वो घर पहुंच कर विचार करते रहे कि जहां राजा की आज्ञा को मानना अनिवार्य है वहीं यह मेरे धर्मानुसार कार्य नहीं है।
धर्म निष्ठ व्यक्ति सदैव ही अपने आचरण में अहिंसा का भाव रखते हैं।
दीवान साहब अगले दिन यथासमय दरबार में हाजिर हुए।अब राजा व दीवान साहब नेअपने अपने घोड़ों पर सवार होकर मोती डूंगरी की ओर प्रस्थान किया।
जयपुर में आज के बिड़ला मन्दिर, राजस्थान विश्वविद्यालय, बापू नगर, गांधी नगर, बजाज नगर
के स्थान पर बियाबान जंगल थे।
राजा व अमर चन्द जी इस जंगल में पहुंच शिकार की तलाश करते हुए ऐसे स्थान पर पहुंच गए जहां हिरणों का झुंड घास चर रहा था।
इस झुंड के हिरण दोनों घुड़सवारों को देखकर भागने लगे तभी दीवान अमर चन्द जी ने बहुत जोर से आवाज दी है हे मृगराजों ठहर जाओ, कहां भागे जा रहे हो ? जब प्रजा का रक्षक ही तुम्हारा भक्षक बन रहा है, तो अब किसकी शरण में जाकर अपनी रक्षा करोगे।
दीवान साहब की इस करूणामयी आवाज से सभी हिरण रुक गये।
यह अद्भुत व अविश्वसनीय माजरा देख कर राजा स्तब्ध रह गये उनके हाथ से बंदूक छूटकर नीचे गिर गई राजा ने घोड़े से उतर कर अहिंसा मयी जैन धर्म की जय बोल कर दीवान अमर चन्द जी से क्षमा मांगी एवं भविष्य में शिकार नहीं करने का प्रण लिया।
धन्य है ऐसे धर्म परायण दीवान साहब।
दीवान साहब के साथ अनेक द्वैषतापूर्ण कृत्य हुए हैं फिर कभी अवसर मिलने पर चर्चा करेंगे।

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