लाडनूं में संस्कृत दिवस पर समारोह का आयोजन
लाडनूँ। संस्कृत दिवस के अवसर पर यहां आयोजित संस्कृत समारोह उत्सव में मुख्य अतिथि प्रो. जयकुमार जैन जयपुर ने संस्कृत को विश्व की प्राचीनतम भाषा बताते हुए बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1977 में यह स्वीकार किया कि संस्कृत सभी भाषाओं के निकट है। नासा ने भी अपने प्रकाशन के जुलाई 1987 के अंक में कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत को माना है। अंतरिक्ष में संदेश भेजे जाने के लिए संस्कृत सबसे बेहतर भाषा है। अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में संदेश भेजे जाने पर उनमें शब्द आगे-पीछे और गलत हो जाते हैं, लेकिन संस्कृत में भेजे संदेश का अर्थ यथावत रहता है। अंतरिक्ष विज्ञान के लिए संस्कृत आवश्यक है और संस्कृत साहित्य में समस्त अंतरिक्ष विज्ञान समाहित है। वैदिक साहित्य संस्कृत में है और जैन साहित्य भी बहुतायत से संस्कृत में है। उन्होंने यहां जैन विश्वभारती संस्थान के संस्कृत व प्राकृत विभाग द्वारा मंगलवार को आयोजित इस समारोह में बताया कि सम्पूर्ण जगत की प्राचीन भाषाओं में संस्कृत के साथ प्राकृत का भी महत्व है। भारत के प्राचीन शिलालेखों में प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ था। सम्राट अशोक महान और कलंग विजेता खारवेल के शिलालेख प्राकृत में मिलते हैं। संस्कृत के साथ प्राकृत के अध्ययन को भी महत्व दिया जाना चाहिए। उन्होंने जहां साहित्यिक भाषा संस्कृत को बताया, वहीं लोकभाषा के रूप में प्राकृत को समानान्तर बताया।
विज्ञान की भाषा है संस्कृत
जसवंतगढ के तापड़िया संस्कृत महाविद्यालय के प्रो. चन्द्रशेखर ने कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि के रूप में अपना सम्बोधन संस्कृत में देते हुए कहा कि प्राचीन काल में श्रावणी पर्व पर शाला में प्रवेश की व्यवस्था थी। प्रवेश के बाद संस्कृत में भी समस्त आचरण किए जाते थे। इसी दिन को अब संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने इस विज्ञान युग में और वायुयान युग में संस्कृत को विज्ञान की भाषा बताया और कहा कि हमारा प्राचीन ज्ञान-विज्ञान बेहतर था। हमारे यहां तो पुष्पक विमान के मात्र चिन्तन से संचालन का उल्लेख मिलता है। उन्होंने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक बोधायन का उल्लेख करते हुए कहा कि जो पाइथागोरस ने खोज की वह तो बोधायन बहुत पहले कर चुके थे। उन्होंने संस्कृत को तनाव व रुग्णता दूर करने वाली भाषा बताया। संस्कृत भारती संस्था के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती का मुख्य उद्देश्य है, संस्कृत का प्रचार-प्रसार करना और संस्कृत-संभाषण सिखाकर इसे फिर से व्यावहारिक भाषा बनाना। उन्होंने संस्कृत भारती के संस्कृत-संभाषण शिविरों में दस दिन तक प्रशिक्षण द्वारा बच्चों को संस्कृत में संभाषण योग्य बनाने की जानकारी दी। साथ ही बताया कि पत्राचार द्वारा संस्कृत अध्ययन भी करवाया जाता है। ‘संस्कृत परिवार योजना’, ‘संस्कृत ग्राम योजना’ और ‘संस्कृत बालकेन्द्र’ संचालन के बारे में भी बताया।
समस्त क्रियाकलापों से जुड़ी भाषा है संस्कृत
समारोह में सारस्वत विद्वान प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत व संस्कृति की रक्षा से ही है। उन्होंने बताया कि संस्कृत से वाणी शुद्ध होती है। पाणिनी ने तीन शास्त्रों की रचना की, वैद्यक, योगशास्त्र एवं व्याकरण। इनमें वैद्यक शरीर की शुद्धि करता है, योग मन को शुद्ध बनाता है और व्याकरण वाणी को शुद्ध करता है। उन्होंने श्रावणी पर्व पर उपाकर्म को क्षमावाणी पर्व के रूप में तथा वेदवाक्य ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ को अनेकान्त का मूल बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत व प्राकृत परस्पर पूरक भाषाएं हैं। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. जैनेन्द्रकुमार जैन ने कहा कि जीवन के समस्त क्रियाकलापों व दिनचर्या से जुड़ी हुई भाषा है संस्कृत। हम पूजा पद्धति में संस्कत का ही इस्तेमाल करते हैं। जीवन का हर पहलु संस्कृत से जुड़ा हुआ है। इसमें दैनिक व्यवहार, व्यापार, सामाजिक जीवन, व्यक्त्गित जीवन, मानवीय मूल्यों की उद्भावनाएं आदि सभी संस्कृत साहित्य से ही मिलती है। उन्होंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, जो अब केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय बन चुका है के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में मुमुक्षु बहिनों ने भी संस्कृत में अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य डॉ. समणी संगीतप्रज्ञा ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम मंगलाचरण से प्रारम्भ किया गया। अंत में डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन सब्यसाची सारंगी ने किया।