सात सौ श्री फलों से होगी अक्पनाचार्य आदि मुनि राजो की आराधना: विजय धुर्रा
अशोक नगर। जल का सदुपयोग करना सीखे आप सम्पन्न है आज आपके पास सम्पन्नता है तो आपको जल की कीमत समझ में नहीं आ रही हम साधु पैदल विहार करते रहते हैं तो देखते हैं कि पानी भरने के लिए लम्बी लम्बी लाइने लगी रहती है यहां तक कि आपस में झगड़े हो जाते हैं सिर्फ पानी के कारण और हमारा ध्यान ही नहीं है और हम जल को बरबाद करते चले जा रहे हैं । जल भी जीव है हमें इस बात का ज्ञान ही नहीं है आज आपके पुण्य का उदय है इसलिए आपको सब सुविधाएं मिल रही है लेकिन आप सोचें कि जो लोग अभाव में जी रहे हैं उनको कितनी परेशानी हो रही है आपके जीवन में इस तरह के अभाव ना आये इसके लिए हम जल के दुरूपयोग को रोकें उक्त आश्य के उद्गार आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज ने सुभाषगंज में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।
महा मुनिराजो की आराधना के साथ निर्वाण लाड़ू चढ़ेगा
समारोह को सम्बोधित करते हुए मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने कहा कि आचार्य श्री आर्जव सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में वात्सल्य पर्व रक्षाबंधन पर सात सौ मुनि राजों की संगति के साथ महा आराधना के साथ ही भगवान श्री श्रेयांस नाथ स्वामी के निर्वाण कल्याणक की पूजा होती साथ ही आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की पूजन के साथ ही अक्पनाचार्य आदि सप्त शतक मुनि राजों के चरणों समाज जनों द्वारा सामूहिक रूप से सात सौ श्रीफल समर्पित किए जायेंगे साथ ही सोलह कारण विधान हेतु पंचायत कमेटी के महामंत्री राकेश अमरोद व प्रमोद मंगलदीप के पास अपने नाम प्रस्तुत किए जा सकेंगे इस अवसर पर आर्जव वाणी के सम्पादक डॉ सुधीर कुमार ने अपने विचार रखे उनका सम्मान समाज के अध्यक्ष राकेश कासंल महामंत्री राकेश अमरोद कोषाध्यक्ष सुनील अखाई सहित अन्य अधिकारी ने किया
हरियाली देखने को हमारी आंखें देखना चाहती है
उन्होंने कहा कि आज हमारी आंखे हरियाली देखने को आतुर रहती है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दंतोन करते थे एक दिन दंतोन के लिए किसी ने नीम के पेड़ की पूरी डालीं तोड़ कर एक छोटी सी दंतोन गांधी जी को दी तो गांधी जी ने कहा कि भाई इतनी बड़ी डाल क्यों तोड़ दी उन्होंने इसकी सीख दी और अनर्थदण्य से अवगत कराया इसलिए हमें छोटी छोटी बातें का ध्यान रखना चाहिए जल वायु पेड़ पौधों में भी जान होती है वैज्ञानिकों ने इसे सिद्ध किया है ये सब चीजें करूणा की है एक वैष्णव साधु ने इतना तक कहा कि जैन साधु की तपस्या बहुत कठिन है वे तन से तपस्या करते हुए आपको दिख जाते हैं लेकिन हमने महसूस किया कि वे तो मन से भी हिंसा की बात सोचते भी नहीं है ये बहुत कठिन है और वे करते हैं ये बहुत दुर्लभ है।