Friday, November 22, 2024

“दावेदारी”

व्यंग्यात्मक कहानी

अजय अपनी दादी को अखबार पढ कर सुना रहा था। कि पृथ्वी वासियों ने भी चांद पर अपनी दावेदारी जता दी है। भारत चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बना और चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया । रक्षाबंधन से पहले ही धरती माता ने चांद मामा के राखी बांध दी है। तभी बीच में दादी बोली आज मेरा चश्मा टूट गया है, लगा मुझे कहानी सुनाने ! अरे दादी कहानी नहीं सच्ची बात है देखो तस्वीर जिसमें धरती माता राखी बांध रही है। हांं,हां,हांं अब जल्दी से मेरी लाठी ले आ मेरा भ्रमण पर जाने का समय हो गया है। तभी दरवाजे पर गाड़ी आकर रुकी।
दादी बोली देखो अजय कौन है ? अजय बोला अरे दादी मुझे क्या पता कौन है। सामने से एक युवा आता हुआ बोला दादी मुझे नहीं पहचाना मैं दिलीप जी का बड़ा लड़का,अरे दिलीप का बड़ा लड़का राजन हां, क्या बात है दादी आपको तो मेरा नाम भी पता है । ये कौन है तेरे साथ,मेरे दोस्त है। अच्छा आज कैसे आना हुआ तेरा राजन। बबलू और उसकी पत्नी तो नौकरी पर गए हैं। राजन बस दादी आपका आशीर्वाद चाहिए था। अरें,क्या तू भी चांद पर जा रहा है। नहीं दादी आपके इस बेटे ने अपनी दावेदारी जता दी है। दादी ,कहां पर क्या जता दी है तूने। अरे दादी अबकी चुनाव में जनसेवा का भार संभाल रहा हूं। दादी बोली अच्छा चुनाव लड़ रहा है। हां, अच्छा है चुनाव लड़ो, मेरा आशीर्वाद तो सदैव तुम्हारे साथ है। ठीक है दादी दोबारा से पैर छूकर राजन गाड़ी में बैठ कर चल दिया। उधर दादी भी चल दी भ्रमण के लिए, जाते-जाते अपने पोते अजय से बोली बेटा। मै जब तक वापस नहीं आती हूं दरवाजा मत खोलना। अजय बोला ठीक है दादी, यह लो आपकी लाठी अभी दरवाजे पर पहुंची ही थी कि एक और गाड़ी दादी के ठीक सामने आकर रुकी साड़ी पहने हुए घूंघट में दादी के पैर छुए । मैं यामिनी,अरे यामिनी तू आज इतनी जल्दी में कैसे,सब कुशल मंगल तो है ना, यामिनी बोली हां दादी मां बस आपका आशीर्वाद लेने आई थी। दादी भी समझ चुकी थी कि उसके राज्य में चुनाव होने वाले हैं। और सभी लोग अपनी अपनी दावेदारी जता रहे। दादी कुछ बोलती उससे पहले ही यामिनी तो गाड़ी में बैठकर चलती बनी। दादी भ्रमण से वापस लौट कर घर आई तो अजय ने दरवाजा खोला और बोला दादी लगता है आज तो पूरे देश को आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है। दादी बोली ऐसा क्या हुआ। अजय बोला अब तक छ: लोग तो आ चुके हैं आपका आशीर्वाद लेने। मैने तो खिड़की से ही मना कर दिया और बोला कि शाम को आना अभी दादी भ्रमण के लिए बगीचे में गई हुई है । अजय और कुछ बोलता उससे पहले ही दीपक आ गया । दादी आपका आशीर्वाद चाहिए। दादी बोली आज तो सभी को मेरा आशीर्वाद चाहिए । जब दादी को जरूरत होती है तब कोई संभालने नहीं आता। दादी ऐसा क्यों बोलती हों,मैं तो हमेशा सबकी सहायता के लिए तैयार खड़ा रहता हूं। अरे दीपक तेरी बात अलग है। तुझे तो पता है उम्र हो गई है तेरी दादी की अस्सी में एक कम। मैने तो अपने आपको फिट रख रखा है इसलिए हाथ पैर चल रहे है । दीपक अबकी बार अपने क्षेत्र में कुछ ज्यादा ही दावेदार हो गए है। जिम्मेदारी संभाली नहीं जाती है इनसे और दावेदारी जता रहें है। अरे,क्या चुनाव भी कोई दावेदारी से जीत सकता है भला। ये तो जनसेवा है। जनता जिसके काम से खुश होगी उसे ही सौंप देगी जनप्रतिनिधि का खिताब,तभी कुसुम आ गई और बोली अरे दादी मां क्या हुआ आज तो आपके घर सुबह से ही गाडियां बहुत आ रही है। अरे कुछ नहीं कुसुम बता तेरे काका अबकी बार चुनाव में दावेदारी नही जता रहें क्या ? कुसुम नहीं दादी हर बार उन्हें टिकट मिलने का आश्वाशन मिलता है और अंत में टिकट किसी और को दे दिया जाता है। इसलिए सारे घर वाले नाराज हैं । इस बार चुपचाप घर में ही बैठे है। हां ठीक है,अभी तो चलती हूं, शाम को आती हूं। दीपक बेटा तुमसे एक बात कहूं तुम बुरा मत मानना तुम मेरे दिल के बहुत करीब हों। देखो इन सबके चक्कर में मत पड़ो अपनी मेहनत से अपने व्यापार को संभालो। वैसे भी तुझे समाज सेवा करनी है वह तो तू वर्षो से कर रहा है। तभी उस क्षेत्र का वर्तमान जन प्रतिनिधि वहां आ गया। अरे सुमन काकी स्वास्थ्य कैसा है आप का। दादी बोली बिल्कुल ठीक है तू बता आज कल जनसेवा का काम कैसा चल रहा है तेरा। ठीक-ठाक चल रहा है। बस अब आपके आशीर्वाद की आवश्यकता ज्यादा है। क्यों क्या हुआ ? लगता है मेरे दुश्मन ज्यादा हो गए है, देखो मेरे सामने कम से कम बीस से पच्चीस दावेदार खड़े हो गए है। वर्षों से राजनीति में हूं पर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। मुझे पता है। पहली बार आपने ही मुझे सलाह दी कि मैं जनसेवा करूं बस इसलिए आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। दीपक दादी की तरफ देख रहा था। अरे बलबीर ज्यादा चिंता मत कर जरा शांत रह पहले तो ठंडा पानी पी और सोच ऐसी नौबत क्यों आई । तभी एक लड़का अपने हाथ में कैमरा लेकर आ गया और बोला साहब तस्वीर ले लूं क्या सोशल साइट पर डालने के लिए। दादी ने उसे मना कर दिया और बोली तुम्हारे साहब अभी थोड़ी देर में आते हैं तुम गाड़ी में जाकर बैठो। अरे बलवीर मुझे याद है कि तेरा नामांकन पहली बार तेरे काका ने ही भरा था। पर मुझे कहना तो नहीं चाहिए लेकिन अब वक्त बदल गया है।आज की जनता काम देखती हैं वो भी धरातल पर।
सपनों की दुनिया को आज के युवा नहीं मानते। बलबीर पर काकी मैं तो सभी की सेवा करता हूं। काकी बोली, मुझे लगता है तूने जो अपने सलाहकार रखे हैं। वो कलाकारी करते रहते हैं। आज इसलिए ऐसी नोबत आई हैं नही तो ऐसा नहीं होता। तेरी पार्टी को जिताऊ उम्मीदवार चाहिए, हो सकता है उन्हें तेरे जीतने की आशंका कम लगती हों। ये तो पता नहीं काकी, मेरा तो एक पैर राजधानी में एक पैर यहां लगा रहता है । दादी ,चल अभी पता करते हैं । तू जा अंदर बैठ में आती हूं। दीपक जाकर कुसुम को बुला ला, कुसुम के पास पूरे क्षेत्र की खबर रहती है । कुसुम ने बलवीर को पहले कभी प्रत्यक्ष नहीं देखा था। हमेशा बलवीर का नाम सुनती या तस्वीरो में ही देखती थी। अरे दादी क्या हुआ ? कुछ नही कुसुम मेरा एक रिश्तेदार आया है जरा चाय,नाश्ता बना दे । क्यों नहीं दादी,दीपक दादी के पास बैठ गया। अब दादी कुसुम से पूछ रही है की अबके अपने क्षेत्र में किसे जन प्रतिनिधि चुनना है। क्या तेरी महिला मंडली पुराने वाले को ही वापस कमान देना चाहती है। अरे दादी नहीं,अबकी बार वो नया लड़का है ना क्या नाम है उसका,पवन उसे समर्थन देने की सोची है। दादी क्यों क्या हुआ पुराने वाले को बहुत सालों का अनुभव है। क्षेत्र में विकास भी तो बहुत करवाया है उसने। वैसे भी राजनीति में उम्र और योग्यता देखी नहीं जाती । कुसुम बोली दादी ,आपको पता नही है महिलाएं हर समय उसे कोसती रहती है। जन प्रतिनिधि को मत देने का मतलब अपना मन देना है। जिसको अपना मन दे दिया उससे महिलाओं को अपेक्षा ज्यादा होती है। सुबह जागने से लेकर रात को सोने तक सौ बार उलाहना देती है। कैसे कुसुम जरा विस्तार से समझाना। कुसुम लो पहले चाय पी लो दादी। अब देखो आज ही की बात ले लो सुबह बच्चों के लिए नाश्ता बनाने लगी तो बिजली चली गई । सोचा कपड़े हाथ से ही धो लेती हूं तो पता चला पिछले दो दिन से पानी नहीं आया। सोचा जब तक बिजली आती है तब तक थोड़ा राशन का सामान लेकर आती हूं । रास्ता इतना खराब था की समझ में नहीं आ रहा था सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क,गाड़ी पिंचर हो गई और घर आकर राशन का हिसाब लगाया वो भी दो हजार रूपए महंगा। ये तो रोजमर्रा की बात है। शाम को तुम्हारा बेटा घर आया और बोलने लगा साहब ने किसी अपने आदमी को लगाने के चक्कर में मुझे दूसरी जगह भेज दिया है। अब बताओ यह कोई न्याय संगत बात थोड़ी है कि अपने लोगो को रखने के चक्कर में आम आदमी को आम की तरह चूस कर फेंक दिया जाएं। अबकी बार मैंने तो पूरा मन बना लिया है नए को मौका देंगे, कुछ तो बदलाव होगा। अच्छा दादी अभी तो मैं चलती हूं। दादी के पैर छुए और चली गई। बलवीर दादी की तरफ देख रहा था।दादी बोली जीतने के लिए एक-एक मत कीमती होता है । खासतौर पर महिलाओं का अब वो जमाना तो रहा नहीं की जैसा घर वाले कहेंगे उसी के अनुसार मत देगी। अब आगे तेरी जनसेवा,मेरा आशीर्वाद तो सदैव तेरे साथ है। बलवीर चुपचाप गाड़ी में बैठा और चलता बना।

डॉ.कांता मीना
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