विशाल पाटनी/भागलपुर। दिगंबर जैन मंदिर, भागलपुर में मुनिराज विशल्य सागर जी के सानिध्य में बुधवार को 23वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण कल्याण महोत्सव धूमधाम से मनाया गया।इस मौके पर सम्मेद शिखर तीर्थ की एक अनुकृति पहाड़ की रचना की गई।यह अनुकृति देश भर के श्रद्धालुओं को बहुत आकर्षित कर रही हैं । निर्वाण कल्याण पर निर्वाण का मार्ग प्रशस्त करते हुए परम पूज्य मुनिराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में तीन क्रियाएं होती रहती है। 1-निर्वाह 2- निर्माण और 3- निर्वाण निर्वाह और निर्माण की कला में तो यह जीव अनादिकाल से पारंगत से परंतु आज सीखना है, निर्वाण की कला ।मुनिराज ने कहा प्रेम बाटने से प्रेम मिलेगा.कभी सौंचा आपने की भगवान तो मोक्ष चले गए और हमारे वितरागी प्रभु ना कुछ लेते हैं ना कुछ देते हैं फिर मोक्ष कल्याणक पर लड्डू क्यों चढ़ते हैं ? मुनिराज कहते हैं कि जैसे बूंदी के हर दाने में मिठास है उसी प्रकार आत्मा के प्रत्येक प्रदेश पर केवल ज्ञान शक्ति है और भगवान के मोक्ष जाने पर मेरा मन मुदित है इसलिए निर्माण कल्याण पर बूंदी का मोदक लड्डू चढ़ाया जाता है। क्योंकि मोदक का अर्थ मुदित होना या मोदक हमारे मुदित भाव का द्योतक है । जब इस जीव को निर्वाह एवं निर्माण से विरक्ति होती तभी वह निर्वाण का प्रयास करता है। भगवान पारसनाथ का मोक्ष कल्याणक हमारी अंतर चेतन को जगा देता है। जिन तीर्थंकर के जन्म के 6 माह पुर्व से कुबेर रत्न बरसाते थे, दीक्षा के बाद उन्हीं तीर्थंकर पर पत्थर भी पड़ गए, क्योंकि प्रकृति का यह अकाट्य सिद्धांत है कि जैसा करोगे वैसा फल भोगना पड़ेगा । इसे कहते हैं कर्म का सिद्धांत, कर्म किसी को नहीं छोड़ते हैं, कर्म का भार स्वयं को चुकाना है।