Saturday, September 21, 2024

चाही हुई वस्तु उपलब्ध हो जाए तो उसका तो हर व्यक्ति स्वागत करता है लेकिन वे आसाधारण लोग होते है जिसे उन्होंने नही चाहा और वह मिल जाये तो उसको भी वेलकम कर लेते है : निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज

आगरा। दो प्रकार के पुण्य होते है, एक पुण्य वह है जिस पुण्य को सभी चाहते है और मिल जाये तो अपने आप को अहोभाग्य मानते है लेकिन कर्म सिद्धान्त में कर्मो के ऐसे विचित्र पुण्य की चर्चा की गई जिसको कोई चाहता नही है लेकिन मिल जाये तो कोई छोड़ता नही है। हम चाहते है कि हमारे जीवन मे साता का उदय हो, उच्च गोत्र का उदय हो और वो प्राप्त हो जाती है तो एक आनंद की अनुभूति होती है लेकिन एक पुण्य वो भी है जिनको कोई नही चाहता है, मिल जाये तो छोडता नही है। जिस कर्म का नाम है तिर्यंचगति, जिसको कोई नही चाहता तिर्यंच गति यह पाप प्रकृति है लेकिन तिर्यंच आयु पुण्य प्रकृति है। तिर्यंचों में कोई जाना नही चाहता, और कोई चला जाए तो वहाँ से लौटना, मरना भी नही चाहता। इसी तरह ज्ञानी पुरुष भी नही चाहता कि मेरे जीवन मे अशुभ कर्म का उदय आये लेकिन ज्ञानी पुरुष का एक लक्षण होता है, चाहता तो नही है लेकिन आ जाए तो भागता भी नही है। अनचाही वस्तु मिलकर के चाही वस्तु पर व्यक्ति खुश हो जाये, चाही वस्तु को वेलकम करे, चाही हुई वस्तु उपलब्ध हो जाए तो उसका तो हर व्यक्ति स्वागत करता है लेकिन वे आसाधारण लोग होते है जिसे उन्होंने नही चाहा और वह मिल जाये तो उसको भी वेलकम कर लेते है, सोचा नही था कि जिंदगी में मेरे ये कष्ट आएगा। जैसा तुमने नही चाहा वैसे पति-पत्नी भी हो सकते है माँ-बाप भी हो सकते है। जैसा नही चाहा वैसा पड़ोसी मिल गया, मुस्कान सब ने चाही और आँखों मे आँसू मिल गया, ये सारी की सारी चीजें हमारी अनचाही वस्तु। आज सबको ये शिक्षा पार्श्वनाथ भगवान से लेना है। जो हमने जिदंगी में कभी नही चाहा, यदि वो हमारी जिंदगी में आ जायेगा, फिर भी हम आनंद की लहर दौड़ाएंगे। तुम अपने जीवन मे संकट से मुक्ति चाहते हो, तुम अपने जीवन मे प्रतिकूल परिस्थितियों से मुक्ति चाहते हो तो अपना आराध्य उस भगवान को बनाना जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों को वेलकम किया हो, स्वागत किया हो। कभी कोई अशुभ कार्य होने पर सजा मिले तो भाग्यशाली मानना, अच्छा हुआ जैसा किया था वैसा फल मिल गया, अच्छा हुआ तो वो सजा नही कहलाएगी वो प्राश्चितय कहलायेगा, वो तप कहलायेगा। अपराध ज्ञानी और अज्ञानी दोनो व्यक्तियो से होते है, अज्ञानी सजा होने पर दुख मनाता है, सजा से भागता है लेकिन ज्ञानी व्यक्ति सजा से नही भागता है, सजा लेने के लिए स्वयं उपस्थित होता है। बुरे दिनों में तुम रो पड़े तो बुरे दिन और आएंगे। मच्छर के काटने पर तुम रो पड़े तो तैयार रहना अब बिच्छू आने वाला है। संसार मे कोई भी ऐसा व्रत नियम नही है जो इतने जल्दी कर्मो का क्षय कर दे जो यह व्रत है कि जब अशुभ कर्म के उदय आये तो रोना मत जरूर मैंने खोटा कार्य किया है तभी मेरे ये अशुभ कर्म का उदय आया है, आज नही कल किया होगा, इस भव में नही अगले भव में किया होगा लेकिन किया होगा।

संकलन- शुभम जैन ‘पृथ्वीपुर’

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