कृष्ण भक्ति से भक्त का जीवन बन जाता सार्थक, होता आत्मकल्याण
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। भगवान श्रीकृष्ण की महिमा अपरम्प़ार है। उनके नाम कृष्ण ज्योतिष के प्रसिद्ध आचार्य गर्ग मुनि (ऋषि) ने रखा था। छह प्रकार के परमात्मा के स्वरूप का संप्रलिन होने पर कृष्ण शब्द बनता है। एक अक्षर की अद्भुत व्याख्या है जो भक्तों को आनंद रस से सरोबार कर देती है। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने मंगलवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत कृष्ण नाम की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने गर्ग संहिता के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि पहला अक्षर क कमलकांत विष्णु से जुड़ा है। रि अक्षर में राम का स्वरूप भी समाया हुआ है। स अक्षर से एश्वर्य पूर्ण श्वेतदीपपति परमात्मा है। ण अक्षर से अभिप्राय नृसिंग भगवान जिसमें विद्यमान हो। शब्दों में अ कार की मात्रा से अग्नि भूख है। शास्त्रीजी ने कहा कि परमात्मा का एक व्यापक अर्थ है कृष्णः इसमें दो विसर्ग है उनसे नर ओर नारायण दोनों समाए हुए है। यह छह स्वरूप जिस शब्द में समाएं होते है तब जाकर पूर्ण रूप से कृष्ण शब्द बनता है। कृष्ण भक्ति करने वाले का जीवन सार्थक हो जाता है। उन्होंने कहा कि जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के भी छह प्रकार के संस्कार होते है। इनमें जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, द्विजन्मा संस्कार, मुंडन, विवाह एवं अंत में अंतिम संस्कार। इसी प्रकार छह प्रकार का शुद्धिकरण भी शास्त्रों में बताया गया है। चातुर्मासिक सत्संग के तहत शास्त्रीजी प्रतिदिन भक्ति व साधना से जुड़े नए-नए प्रसंग सुना श्रोताओं को धर्मरस की गंगा में डूबकी लगा आत्मकल्याण की राह पर अग्रसर कर रहे है। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु सत्संग-प्रवचन श्रवण के लिए पहुंच रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।