भरोसा तोड़ देना आम बात हो जाने से विश्वास का रिश्ता कमजोर हो गया
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। विश्वास हर जगह किया जा सकता पर श्रद्धा का रिश्ता हर जगह नहीं होता है। श्रद्धा का रिश्ता देव, गुरू, परमात्मा या किसी श्रद्धेय के साथ ही होता है। उसका कभी घात नहीं होता है। श्रद्धा का दूसरा अथ आस्था भी होता है। हमारी आस्था ही हमे भगवान से जोड़े रखती है। इसके विपरीत विश्वास के रिश्ते में भरोसा कायम रह भी सकता है और विश्वासघात भी हो सकता है। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने गुरुवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत व्यक्त किए। उन्होंने गर्ग संहिता के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि विश्वास व्यक्ति किसी पर भी कर सकता है। कई बार डाकू पर भी विश्वास कर लिया जाता है। आजकल भरोसा तोड़ देना भी आम बात हो जाने से विश्वास का रिश्ता कमजोर हो गया है। शास्त्रीजी ने कहा कि ज्ञान मार्ग पर चलने के लिए भी भरपुर श्रद्धा की आवश्यकता होती है। बिना श्रद्धा के बड़े-बड़े योगीजन भी अंतस्थ ईश्वर को नहीं देख पाते है। बिना श्रद्धा के कोई कार्य सफल नहीं हो सकता। ईश्वर की आराधना भी तभी सार्थक फलदायी होती है जब हम उसे श्रद्धाभाव के साथ करें। उन्होंने कहा कि श्रद्धा के माध्यम से ही जीवात्मा ओर परमात्मा का रिश्ता जुड़ता है। श्रद्धा से जुड़ा रिश्ता अमर सम्बन्ध होने से कभी टूटता नहीं है ओर हमेशा कायम रहता है। हमारे रिश्ते श्रद्धा की भावना से कायम किए जाए तो अवश्य घनिष्ठ ओर सुख-दुःख में साथ देने वाले होंगे। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु सत्संग-प्रवचन श्रवण के लिए पहुंच रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।