मनोज नायक/भिण्ड। देश तो स्वतंत्र छियत्तर साल पहले हो चुका था, लेकिन आप आज तक स्वतंत्र नहीं हो सके। गुलामी अंग्रेजों की थी सो वो तो बाहर थे और छोड़कर चले गए, लेकिन असली शत्रु तो हमारे भीतर हैं। जिनके हम गुलाम हैं, हम अपनी ही बुरी आदतों के गुलाम हैं। हम निन्दा करना नहीं छोड़ पाते, हम दूसरों को गिराना नहीं छोड़ पाते, वास्तविक स्वतंत्रता तो हमारी तब होगी जब हम अपने इंद्रिय विषयों और बुरे विचारों से मुक्त हो जाएंगे । तब हमारे देश और समाज की स्वतंत्रता का बहुमान सिद्ध होगा। उक्त विचार बाक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चय सागर महाराज ने कीर्ति स्तंभ जैन मंदिर भिण्ड में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर व्यक्त किए।
आचार्य श्री ने कापोत लेश्या के संदर्भ में समझाते हुए कहाकि कापोत यानिकि कबूतर जैसा वर्ण, कबूतर जैसी प्रवृति। अगर आपको तोता पालना है तो आपको पिजड़ा खरीदना पड़ेगा, उसके खाने के लिए फल आदि की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन कबूतर पालने के लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि कबूतर को जहां भी रहने की आदत पड़ जाती है, वह वहां से भटकता नहीं हैं। सारे दिन वह दूर दूर तक उड़ता रहता है, अपना भरण पोषण करता है और शाम को अपने उसी स्थान पर स्वतः वापिस आ जाता है। यदि कबूतर को कुछ खाने पीने को भी न दो तो वह कुछ भी खाकर अपना पेट भर लेता है। कापोत लेश्या बाला मायाचारी से भरा रहता है। भी दिखता कुछ और है, होता कुछ और है। रावण की हजारों रानियां होते हुए भी वह सीता के लिए ऊपर से दिखाबटी रूप में साधू बन गया और अंदर से राक्षस ही बना रहा। ये कापोत लेष्या वाली प्रवृति है।