भाव शुद्ध होने पर सामायिक की साधना श्रेष्ठ आराधना
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। धर्म का कार्य होता है सेतु बनना लेकिन हमने धर्म के नाम पर दीवारे खींच ली है। भगवान महावीर के तो कहलाते है लेकिन भगवान महावीर के नहीं बन सके। सम्प्रदाय ओर पंथ इतने हावी हो गए कि हम अरिहन्त को भूल गए। पंथ, गच्छ, परम्परा से उपर उठ भगवान महावीर के बन जाओ सब भेदरेखा समाप्त हो जाएगी। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में सोमवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर न तो श्वेताम्बर न दिगम्बर, न तेरापंथी न मूर्तिपूजक थे वह तो सभी के परमात्मा थे। सबसे पहले सबसे उपर उनको मानेंगे तो ही जैन एकता हो सकती है। संत-साध्वियों की कथनी व करनी में भी अंतर आ गया है। पहले सभी आत्मा के संयम के प्रति सजग रहते थे तो लब्धियां प्राप्त होती थी अब हमारी करनी कथनी से जुदा होने से किसे लब्धि मिलती है। साध्वीश्री ने कहा कि जब कोई गलती बार-बार दोहराई जाए तो उसे माफ नहीं किया जा सकता है। सामायिक केवल 48 मिनट बिताना नहीं है बल्कि 32 दोष व पांच अतिचारों को समझने पर ही ज्ञात होगा कि सामायिक क्या है। भाव शुद्ध होने पर ही सामायिक करना सार्थक है एवं वह अभयदान की प्रयोगशाला है। चातुर्मास हमे बर्हिमुखी से अर्न्तमुखी बनने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि फोन नहीं आ जाए इस चक्कर में हमारा सामायिक करना ओर नौकरानी आने का समय हो गया है इस कारण प्रवचन श्रवण करना छूट रहा है। चार्तुमासिक व्याख्यान में जिनवाणी श्रवण करने से जो ज्ञान प्राप्त होगा वह 100 किताबों का स्वाध्याय करने पर भी नहीं मिल सकता। साध्वी दर्शनप्रभाजी ने घर पर कोई भी संत-साध्वी आहार-पानी लेने पधारे उस समय अपनी वेशभूषा के प्रति सजग रहने की नसीहत देते हुए कहा कि हमारे वस्त्र छोटे ओर अमर्यादित नहीं होने चाहिए जो किसी संत-साध्वी का मन चंचल कर दे। संसार में सब स्वार्थी पर धर्म ही सच्चा मित्र है। धर्म हमारे साथ है तो जो चला जाए वह सब वापस आ सकता पर धर्म का साथ छूट जाए तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि गुरू के वचनों की पालना करने पर हमेशा अच्छा फल प्राप्त होता है। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए कहा कि पिछले भवों में किए गए कर्मो का फल भोगने से भी हम बच नहीं सकते। सती अंजना ससुराल के बाद पीहर में माता-पिता के भी नहीं अपनाने पर भाईयों के द्वार जाती है लेकिन वह भी रखने को तैयार नहीं होते है। सखी बसंतलता के साथ जंगल में रहने के दौरान ही उनके पुत्र हनुमान का जन्म होता है। जंगल में साधनरत संत बताते है कि पिछले जन्म के पापकर्म के कारण अंजना व उसकी सखी बसंतलता को ये कष्ट उठाने पड़ रहे है लेकिन अब ये पुत्र बहुत भाग्यशाली होगा ओर जल्द उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। धर्मसभा में साध्वी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने प्रभु महावीर भगवान तेरा सबसे उंचा ज्ञान गीत प्रस्तुत किया। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा साध्वी डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा., तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा।
घण्टाकर्ण महावीर स्रोत का जाप मंगलवार को
चातुर्मासिक साप्ताहिक आयोजन के तहत मंगलवार को सुबह 8.30 बजे से सर्वसुखकारी व सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन होगा। सभी तरह के शारीरिक कष्टों के दूर होने एवं सर्वकल्याण की कामना के साथ चातुुर्मासकाल में प्रत्येक मंगलवार को सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक इस जाप का आयोजन हो रहा है। धर्मसभा में युवा श्रावक रीतिक श्रीश्रीमाल ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए तो हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों के साथ अनुमोदना की गई। रविवार को आयोजित प्रश्नमंच प्रतियोगिता में प्रथम अंतिमा ढाबरिया, द्वितीय प्रियंका ढाबरिया एवं तृतीय शैलेजा जैन को भी श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा पुरस्कृत किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। समिति के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है।
सामूहिक आयम्बिल आराधना 17 को
श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर 17 अगस्त बुधवार को देश में एक लाख आठ हजार आयम्बिल तप आराधना में भीलवाड़ा के रूप रजत विहार से भी अधिकाधिक सहभागिता हो इसके लिए साध्वीमण्डल निरन्तर प्रेरणा प्रदान कर रहा है। मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 133वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 96वीं जयंति के उपलक्ष्य में 24 से 26 अगस्त तक सामूहिक तेला तप साधना होगी। इस अवधि में हर घर से कम से कम एक तेला तप अवश्य हो इसके लिए महासाध्वी इन्दुप्रभाजी व अन्य साध्वीवृन्द द्वारा प्रेरणा प्रदान की जा रही है।