पैसा बढ़ा पर परिवार संकुचित होने से खतरे में नजदीकी रिश्ते-नाते
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। घर हो या कार्यस्थल संयम जीवन में हर जगह जरूरी है। कोई भी कार्य करें विवेकपूर्ण होना चाहिए। काम करते समय धन भले भूल जाए पर धर्म को कभी नहीं भूले। बाकी सब तो यहीं छूट जाएंगे धर्म ही सच्चा साथी है जो जीवन के बाद भी साथ जाएगा। हम धन की लालसा में अपने सच्चे साथी धर्म को भूल रहे है। इसी से जीवन में परेशानियां व पापकर्म बढ़ रहे है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में गुरूवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि धर्म के नाम से हमे भागने की नहीं जागने की जरूरत है। कर्म को भोगे बिना संसार नहीं छूटने वाला है। भगवान महावीर व धर्म से जुड़ने पर ही जीवन का उद्धार होगा। जीवन में सबको इग्नोर कर देना पर धर्म को कभी मत छोड़ना। दुःख का समय भी सुख से कैसे बीता सकते यह धर्म सिखाता है। साधु-साध्वी भी धर्म की इस नाव में सवार होकर स्वयं भी तिरने के साथ श्रावक-श्राविकाओं को भी तिराने का प्रयास करते है। साध्वीश्री ने अफसोस जताया कि आज लोगों के पास पैसा बढ़ा है पर परिवार संकुचित हो रहे है। इससे मामा, मासी, बुवा, चाचा जैसे सारे रिश्ते-नाते खतरे में है। बच्चें समझते ही नहीं जीवन में इन रिश्तों का क्या महत्व होता है। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म रूपी चोट लगाए बिना आत्मा का उद्धार नहीं हो सकता है। मन मजबूत होगा तो संकल्प अवश्य पूर्ण हो जाता है। तप, त्याग, व्रत से जीवन सार्थक होता है। कर्मफल भोगने ही पड़ते है चाहे हंसते हुए भोगे या रोते हुए भोगे लेकिन उनसे बच नहीं सकते। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह अंजना को उसकी सास केतुमति चरित्र पर लांछन लगाते हुए सताती है। अंजन के पवनजय के लौट आने तक इन्तजार करने की बात भी नहीं मानती। राजा उसे समझाने का प्रयास करता है तो वह नहीं मानती ओर उसे काले कपड़े पहना वन भेजने की तैयारी शुरू कर देती है। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि कई जन्मों के कर्म होते है जिन्हें हमे भोगना पड़ता है। कर्म निर्जरा करनी होती है। उपवास भी कर्म निर्जरा का माध्यम है। हमारा लक्ष्य कर्मबंध करना नहीं बल्कि कर्म क्षय करना होना चाहिए। कर्म क्षय होते ही मोक्ष गति मिल जाएगी। उन्होंने श्रावक के 12व्रतों में से छठे व्रत उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत का जिक्र करते हुए कहा कि जो एक बार भोगा जाए वह उपभोग होता है ओर जिसे बार-बार भोगा जाए वह परिभोग होता है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं तरूण तपस्वी साध्वी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में मकराना, बोरावड़ आदि स्थानों से पधारे श्रावकों के साथ भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में पधारे श्रावक-श्राविका मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है।
हर घर से हो एक तेला तप
चातुर्मास में मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 133वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 96वीं जयंति के उपलक्ष्य में 24 से 26 अगस्त तक सामूहिक तेला तप साधना होगी। इस अवधि में हर घर से कम से कम एक तेला तप अवश्य हो इसके लिए महासाध्वी इन्दुप्रभाजी व अन्य साध्वीवृन्द द्वारा प्रेरणा प्रदान की जा रही है। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर 17 अगस्त को देश में एक लाख आठ हजार आयम्बिल तप आराधना में भीलवाड़ा के रूप रजत विहार से भी अधिकाधिक सहभागिता हो इसके लिए साध्वीमण्डल निरन्तर प्रेरणा प्रदान कर रहा है।