विद्या भवन पॉलिटेक्निक में आयोजित हुई माटी के गणपति कार्यशाला
उदयपुर। गणपति व देवी पूजा के लिए देश भर में मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजने और विसर्जित करने की परम्परा बढ़ती फैलती जा रही है। पुरातन काल में सनातन संस्कृति और प्रकृति दोनों की रक्षा के प्रयोजनार्थ ईमानदार कोशिशें होती रहीं। बाद में वह स्वरूप विकृत होकर शुरू में प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की छोटी सफेद मूर्तियों में बदला और धीरे धीरे कब विराट कैमिकल युक्त रंगीन मूर्तियों में तब्दील हो गया, पता ही नहीं चला। आज फिर से इस बात की जरूरत आन पड़ी है कि घर मोहल्लों और मंदिरों में अवसर विशेष पर स्थापना कर पूजित गणेश और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं सूक्ष्म, सांकेतिक और कच्ची माटी की बनाकर पूजने और विसर्जित करने के विचार कला विशेषज्ञ कृष्ण केशव काटे ने विद्या भवन पॉलिटेक्निक में आयोजित माटी के गणपति कार्यशाला में शुक्रवार को व्यक्त किए। गौरतलब है कि यह कार्यशाला मार्तण्ड फाउंडेशन, सक्षम संस्थान तथा राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के साझे में आयोजित हुई। कार्यशाला का उद्घाटन प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने किया। इस दौरान प्रशिक्षक काटे ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे इन प्रतिमाओं में बीजों को भी रख दें और तालाब, नदियों में विसर्जन के बजाय चाहें तो घर पर ही किसी जल पात्र में विसर्जन कर उसे किसी बगीचे में अर्पण कर दें। बता दें, काटे के निर्देशन में बीसियों प्रतिभागियों ने मिट्टी से गणपति प्रतिमा बनाई और पत्तियों, फूलों व दूब से उनका श्रृंगार भी करके प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। कार्यशाला के प्रारम्भ में विभागाध्यक्ष जे पी श्रीमाली ने प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा रासायनिक रंगों से निर्मित प्रतिमाओं से झील, तालाब सहित पूरे पर्यावरण पर होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में बताया। अन्त में गौरांग शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर कलाविद लक्ष्मी मूर्ति और योगाचार्य सुरेश पालीवाल सहित नगर के कई प्रबुद्ध पर्यावरण प्रेमी उपस्थित रहे।
रिपोर्ट/फोटो : राकेश शर्मा ‘राजदीप’