दूसरों का घर बना नहीं सकते तो कानों के माध्यम से उसमें आग लगाने का काम मत करों
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जिनवाणी धर्म का मर्म समझाने के साथ देहालय से सिद्धालय तक पहुंचाने वाली है। हम जो कर रहे है वह सही है या गलत है ये जिनवाणी ही समझाती है। कर्म निर्जरा का श्रेष्ठ माध्यम जिनवाणी है। जिंदगी में भले सभी धोखा दे सकते है लेकिन जिनवाणी कभी धोखा नहीं देंगी। इसमें कोई दिखावट, बनावट या मिलावट नहीं होने से ये सबका भला करने वाली है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में शुक्रवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिनवाणी किसी का बुरा नहीं कर सर्वहित की बात करती है। हम संत दीक्षा लेकर अणगार नहीं बन सके तो श्रावक व्रत स्वीकार कर आगारी तो बन ही सकते है। यदि हम किसी का घर बना नहीं सकते है तो कम से से कम कानों के माध्यम से दूसरों के घर में आग तो नहीं लगाए। धर्म व गुरू के बिना जीवन में कुछ नहीं है। जब भी कोई संकट आता है हमे धर्म व गुरू की ही याद आती है। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म करते रहो ओर उसका साथ कभी मत छोड़ो। अपने घर व समाज की फूट को बाहर उजागर नहीं करना चाहिए। बातों को पचाने की क्षमता भी हमारे में होनी चाहिए। जिंदगी में दया पालो की अवधारणा को अंगीकार कर ले तो सर्वसुख की प्राप्ति हो सकती है। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह रानी केतुमति की जिद के सामने राजा भी लाचार होकर अंजना को काले वस्त्र पहना वन भेजने के लिए आज्ञा प्रदान कर देता है। ये कर्मो की कहानी है जो सती अंजना को भोगनी पड़ रही है। अंजना सखी बसंतलता के साथ वन में पहुंच संयम साधना करने लगती है। वह कहती है अब शील व धर्म ही उनका रक्षक है। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि तपस्या के साथ जीवन में संयम भी जरूरी है। भूख से कम खाने की साधना उनोंदरी तप भी श्रेष्ठ होता है। कर्म निर्जरा करने पर ही जीवन सार्थक बन सकता है। उन्होंने कहा कि लक्ष्मी,परिवार, शरीर सभी हमारा साथ छोड़ जाएंगे केवल धर्म ही है जो जीवन के बाद भी साथ जाएगा। जो हमारे साथ जाएगा उसका हम ध्यान ही नहीं रखते ओर जो साथ छोड़ जाने वाले है उनकी संभाल में लगे है। सर्वाधिक ध्यान धर्म पर देना होगा। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं तरूण तपस्वी साध्वी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा में कोटड़ा से पधारे सुश्रावक पारसमल लोढ़ा का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है।
‘‘मां की ममता’’ पर विशेष प्रवचन रविवार को
चातुर्मास में 13 अगस्त रविवार को साध्वीवृन्द के सानिध्य में ‘‘मां की ममता’’ विषय पर विशेष प्रवचन होगा। इसके माध्यम से बताया जाएगा कि मां की ममता एक बच्चें के जीवन में क्या मायने रखती है। मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 133वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 96वीं जयंति के उपलक्ष्य में 24 से 26 अगस्त तक सामूहिक तेला तप साधना होगी। इस अवधि में हर घर से कम से कम एक तेला तप अवश्य हो इसके लिए महासाध्वी इन्दुप्रभाजी व अन्य साध्वीवृन्द द्वारा प्रेरणा प्रदान की जा रही है। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर 17 अगस्त को देश में एक लाख आठ हजार आयम्बिल तप आराधना में भीलवाड़ा के रूप रजत विहार से भी अधिकाधिक सहभागिता हो इसके लिए साध्वीमण्डल निरन्तर प्रेरणा प्रदान कर रहा है। सामूहिक आयम्बिल का लाभार्थी गुलाबसिंह, राजेन्द्र सुकलेचा परिवार रहेगा।