Saturday, November 23, 2024

प्रताप नगर सेक्टर 8 में दो दिवसीय शांतिनाथ मंडल विधान पूजन 13 से

जयपुर। राजधानी के दक्षिण भाग स्थित प्रताप नगर सेक्टर 8 के शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के प्रांगण पर आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में दो दिवसीय श्री शांतिनाथ मंडल विधान पूजन का भव्य आयोजन 13 अगस्त से प्रारंभ होगा। इस आयोजन के मुख्य पुण्यार्जक बनने का सौभाग्य रामावतार, दिनेश, मनीष जैन परिवार डिब्रू वालो को प्राप्त हुआ है। इस पूजन में 100 से अधिक श्रावक और श्राविकाएं भाग लेगी और विश्व कल्याणकारी भगवान शांतिनाथ की भजन – भक्ति के साथ आराधना कर भावों को धारणकर अष्ट द्रव्य के साथ जगत के कल्याण और विश्व में फैली अशांति से मुक्ति की कामना करेगे। इस आयोजन की शुरुवात रविवार को प्रातः 6.15 बजे से मूलनायक भगवान शांतिनाथ के कल्शाभिषेक और शांतिधारा के साथ होगी। इसके पश्चात विधानपूजन प्रारंभ होगा। इसी दौरान प्रातः 8.30 बजे से आचार्य सौरभ सागर महाराज विशेष आशीर्वचन देगें।

ईमानदारी दान को, बेईमानी चोरी को जन्म देती है: आचार्य सौरभ सागर

गुरुवार को प्रातः 8.30 बजे संत भवन में अपने आशीर्वचन देते हुए आचार्य सौरभ सागर महाराज ने कहा की – आज का मनुष्य बेईमानी से धर्म एवं जीवन को चलाता है। बिना बेईमानी से उसका एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता है। कानून वास्तव में अंधा हो गया है, इसलिए तो रिश्वत लेते पकड़े जाने पर रिश्वत देकर छूट जाते है। इस अंधेपन के कारण ही सर्वत्र बेईमानी, कालाबाजारी, लूट, चोरी प्रारंभ हो चुकी है और लोगों के मुख से व्यंगात्मक रूप से अक्षरश: सत्य नारे निकलने लगे है। मेरा भारत महान सौ में से 99 बेईमान।

आचार्य श्री ने आगे कहा की – आज इंसान पहले देसी घी में डालडा, हल्दी में पीली मिट्टी, चावल में कंकड़, कालीमिर्च में पपीते के बीज, तम्बाकू में लीद मिलाता है उसके बाद अपने आपको धर्मात्मा साबित करने के लिए बड़े शान से मंदिर जाता है। इसलिए आज मनुष्य का मनुष्य पर से विश्वास समाप्त हो गया है। आज विदेश जाने के लिए पशु – पक्षी को पासपोर्ट नहीं बनवाना पड़ता लेकिन मनुष्य को बनवाना पड़ता है। क्योंकि मनुष्य ने अपनी इज्जत, अस्मिता को दांव पर लगाकर बेईमानी करके पेटी भरने की कोशिश की है। पशु, पक्षी मात्र पेट भरता है, पेंट नही। पेट भरने के लिए ईमानदारी आवश्यक है। पेटी भरने के लिए काला बाजारी आवश्यक है, बेईमानी, लूट, खसोट, धोखा, छल, कपट, प्रपंच आवश्यक है। इस सृष्टि में केवल ईमानदारी ही है जो ” दान ” को जन्म देती है और बेईमानी ” चोरी ” को जन्म देती है। बेईमान मनुष्य कितना ही धर्मात्मा बनने की कोशिश कर लेवें किंतु वह खुद को धर्मात्मा दिखा सकता है बना नही सकता, किंतु ईमानदार मनुष्य खुद को बना नही सकता केवल दिखा सकता है।

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