राकेश संघी/निवाई। मुनि शुद्ध सागर जी महाराज ने कहा कि हंसी हंसी मे कर्म बांधा जा सकता है लेकिन जब कर्म उदय मे आता है तब हंसी नही आती तब भोगना पड़ता है। यह बात मुनि श्री ने मंगलवार को शांतिनाथ भवन बिचला जैन मंदिर मे धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कही। मुनि श्री ने कहा कि सीता को कितने वर्ष तक पति का वियोग सहना पड़ा। यह कर्म कहा बांधा था पूर्व भव मे उसने एक पक्षी के जोड़े को अलग अलग कर दिया था सिर्फ हंसी हंसी में उसका परिणाम इस भव में पति का वियोग सहना पड़ा। मुनि श्री ने कहा कि कर्म तुम्हे भी छोड़ने वाले नही है जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा। यदि तुने किसी पंछी को पिंजरे मे बंद कर दिया तो अगले भव मे तुझे भी बंद होना पड़ेगा।उन्होने कहा कि जीव को बांधकर के तुने उसकी स्वत्रंता का हनन कर दिया इसलिए तुने कर्म का बंध कर दिया। साधु स्वयं के ऊपर उपसर्ग सह सकता है लेकिन दूसरे को कष्ठ नही दे सकता है। चातुर्मास कमेटी के प्रवक्ता राकेश संघी ने बताया कि प्रवचन से पूर्व मंगलाचरण सिगोली व रावतभाटा की सिटू जैन मधुर भजन गाकर किया। दीपप्रज्जवलन अध्यक्ष हेमचन्द संघी नन्दलाल द्धारा किया गया। संघी ने बताया कि प्रवचन से पूर्व भगवान शांतिनाथ की शांतिधारा के साथ कलशाभिषेक किए गये।बाद मे चोबीस तीर्थकर आदिनाथ भगवान मुलनायक शांतिनाथ भगवान महावीर स्वामी के साथ आचार्य वर्धमान सागर जी विधासागर जी विराग सागर जी विशुद्ध सागर जी एवं मुनि शुद्ध सागर जी महाराज का सामूहिक अर्घ चढ़ाया गया।