एक तीर एक कमान,
आदिवासी एक समान
पूरे विश्व में हमारी यही
तो है पहचान।
प्रकृति के संरक्षण में दे दिया
हमारे पुरखों ने अपना बलिदान।
इस धरा के हम पहले रहवासी है।
हर युद्ध में हमारा सबसे पहले
रहा है योगदान।
अठारह सौ सत्तावन की क्रांति का
पहला बिगुल हमारे पुरखों ने
ही तो बजाया था।
मां भारती के चरणों में दे दिया था।
सबसे पहले अपना बलिदान,
मानगढ़ धाम में कतरा कतरा
हमारे पुरखों ने ही तो बहाया था।
महाराणा प्रताप की भुजाओं में
बल हमारे पुरखों के साहस से
ही तो आया था।
हमारे पुरखों का उलगान जारी है।
आज भी अपने हकों के लिए,
संघर्ष हमारा जारी है।
जय जोहार जय जोहार।
डॉ.कांता मीना