बच्चों को मत करों दादा-दादी से दूर उनके बिना जिंदगी अधूरी: चेतनाश्रीजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जीवन में सबसे अच्छी दोस्ती दादा-पोता ओर दादी-पोती की होती है। दादा-दादी के जीवन में पोता-पोती अंतिम दोस्त ओर पोते-पोती के जीवन में सबसे पहला दोस्त दादा-दादी होते है। चाहते हो बुढ़ापा गुनगुनाते हुए सुख-शांति से बीते तो अपने पोते-पोतियों से घुल मिल जाओ ओर उन्हें अपना खास दोस्त बना लो। ये मानकर चलों कि उनको दोस्त बना लिया तो चाहे बेटा-बहूं सेवा नहीं करे लेकिन वह आपको असहाय नहीं छोड़ेगे। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में रविवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में दादा-दादी दिवस पर विशेष प्रवचन में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से बताया कि पोते-पोती ओर दादा दादी एवं दोता-दोहती व नाना-नानी परस्पर एक-दूसरे के जीवन में कितना अहम स्थान रखते है। ये ऐसा रिश्ता है जिस पर र्स्वस्व न्यौछावर करके भी खुशी होती है। जिसने जिंदगी में दादा-दादी या नाना-नानी का प्यार नहीं पाया उसका जीवन अधूरा है। उन्होंने कहा कि बच्चों को संस्कारित बनाने ओर धर्म से जोड़ने का कार्य माता-पिता से अधिक दादा-दादी कर सकते है। बच्चों की बदलती जीवनशैली से कुंठित होने की बजाय दादा-दादी भी उसी अनुरूप स्वयं को बदलने का प्रयास करे ताकि वह आपसे हमेशा जुड़े रहे। इस स्मॉर्ट युग में दादा-दादी को भी पोते-पोतियों के समान स्मॉर्ट होना है। दादा-दादी स्मॉर्ट फोन का उपयोग बच्चें धर्म का ज्ञान पाने के लिए कैसे कर सकते ये उन्हें समझाएं। स्मॉर्ट फोन रखने या स्मॉर्ट घड़ी पहनने से जिंदगी स्मॉर्ट नहीं बनेगी। जिनशासन की सेवा से जुड़कर ही जिंदगी को स्मॉर्ट बना सकते है। दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि बुढ़ापे की असली लाठी पोते-पोती होते है। उनसे ऐसा रिश्ता कायम करें कि वह कोई बात अपने माता-पिता से भी पहले अपने दादा-दादी को बताए। संस्कारों के अभाव व काल के प्रभाव से परिवार बिखरते जा रहे है ऐसे में दादा-पोता ओर दादी-पोती के इस रिश्ते के अपनत्व व प्रेम को कायम रखने के लिए हम सजग ओर सचेत होना पड़ेगा। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी ने ‘‘दादा-दादी का बड़ा उपकार हमे सन्मार्ग दिखाते है’’ गीत से बात शुरू करते हुए कहा कि बिना प्रतिफल की परवाह किए जिसे रिश्ते को नेकभाव से उम्रभर निभाया जाता वह दादा-दादी ओर पोते-पोती का होता है। पोते-पोतियों को समीप पाकर दादा-दादी को जो एनर्जी मिलती है उसके समक्ष दुनिया की सब दवाईयां फेल है। उन्होेंने बच्चों को कभी दादा-दादी से दूर नहीं रखने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जो माता-पिता ऐसा करते है वह उस तड़फन का अंदाज तभी लगा पाएंगे जब वह स्वयं दादा-दादी बन जाएंगे ओर पोते-पोती पास में नहीं होंगे। दादा-दादी को हल्की सी भी तकलीफ हो तो सर्वाधिक दर्द पोते-पोती को होता है। कभी उन्हें ऐसे धर्मसंकट में मत डालना कि दादा-दादी ओर माता-पिता में किसी एक का चुनाव करने की नौबत आए। हमेशा याद रखे जैसा हम आज करेंगे वैसा ही कल हमारे साथ होने से कोई नहीं रोक पाएगा। इसलिए हमेशा बुर्जुगों की सेवा करें ओर बच्चों को भी प्रेरित करें। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि दादा-दादी का कर्तव्य है कि अपने पोते-पोतियों को संस्कारवान आदर्श नागरिक के रूप में तैयार करें। बच्चें सर्वाधिक कहना किसी का मानते है तो वह दादा-दादी ओर नाना-नानी ही होते है। ऐसे में उन्हें जैन धर्म के संस्कार प्रदान करने चाहिए। उन्होंने माता-पिता की सेवा की प्रेरणा देते हुए कहा कि आज हम सेवा नहीं करेंगे तो बच्चें वैसा ही देखंेंगे ओर कल हमारी सेवा करने वाला भी कोई नहीं होगा। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने श्रावक के 12 व्रतों छठे व्रत दिशा परिमाण व्रत की चर्चा करते हुए आगार सहित उसकी पालना का संकल्प कई श्रावक-श्राविकाओं को दिलाया। उन्होंने कहा कि श्रावक व्रत स्वीकार करने से हम उन पापों से स्वयं को बचा पाएंगे जिनके मर्यादा के अभाव में अनजाने में भागीदार बन जाते है। आत्मा के लिए सिद्धि करेंगे तो छोटी-मोटी सिद्धियां वैसे ही मिल जाएगी। श्रावक को जो मिल रहा हो उसका सदपुयोग करना चाहिए। श्रावक के पास जो ताकत होती वह देवता के पास भी नहीं होती लेकिन अज्ञानतावश उसे नहीं पहचानने से नष्ट करते रहते है।
रिश्ते सहजे रखने के लिए तीन बातों का रखों ध्यान
मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने रिश्तों की व्याख्या करते हुए कहा कि इन्हें सहज कर रखने के लिए तीन बातों का सदा ध्यान रखना चाहिए। सामने वाले के दिल को जीतने का प्रयास करों। उसके दिल से नहीं उतरना है बल्कि उसके दिल में उतर जाना है। एक बार दिल जीत लिया तो आपकी लाख गलतियां भी माफ हो जाएगी। इसी तरह अहंकार व अभिमान पतन का कारण होता है इसलिए कभी रिश्ते में इनको आड़े नहीं आने दे। उन्होंने कहा कि रिश्ते लंबे चलाने है तो हमेशा एक-दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनना चाहिए। सुख में भले साथ न दे पर दुःख में अवश्य साथ देना चाहिए। परिवार में एकता रहेगी तो बच्चों में संस्कार भी आएंगे।
तप की अनुमोदना एवं तपस्वियों का स्वागत
धर्मसभा में तपस्वियों के तप की अनुमोदना के साथ स्वागत-सम्मान भी किया गया। नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. की तपस्या गतिमान है ओर रविवार को उनके 7 उपवास की तपस्या रही। चातुर्मास आयोजक श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष सुश्रावक राजेन्द्र सुकलेचा ने रविवार को 6 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ एवं सुश्राविका मीना खींचा के एकासन तप का मासखमण पूर्ण करने पर श्रीसंघ द्वारा स्वागत-सम्मान किया गया। तपस्वियों का सम्मान तपस्या का संकल्प लेने वाले श्रावक-श्राविकाओं से कराया गया। तपस्वियों की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारे गूंज उठे। करीब 15 माह पूर्व दीक्षा लेने वाली हिरलप्रभाजी के पहली बार अठाई तप की दिशा में गतिमान होने पर उनके सांसारिक परिवारजन चन्द्रसिंह चौधरी संग्रामगढ़ की ओर से प्रभावना वितरण के साथ दोपहर में चौबीसी का लाभ भी लिया गया। तपस्वियों की अनुमोदना में सोमवार व मंगलवार को भी चौबीसी का आयोजन होगा।