Saturday, September 21, 2024

हर गरीब को अमीर आदमी को शगुन मानना है, ईष्या नही करना: निर्यापक मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज

जीवन जब उलझी हुई पहेली बन जाती है तब व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जब जीवन की पहेली सुलझ जाती है तो जीवन किसी भी अवस्था मे हो आनंद ही आनंद आ जाता है। जीवन की गुत्थियां कोई न सुलझा सकता, स्वयं ही सुलझाना पड़ेगी। गुरु मात्र सुलझाने की विधि बता सकते है, शास्त्र जीवन की समस्याओं के समाधान बता सकते है लेकिन विपरीतताओं को अनुकूलता में हमे स्वयं ही बदलना होगा। जिंदगी का सबकुछ लुटाकर के यदि किसी की एक दिन की जिंदगी बढ़ा सकते है तो सबकुछ लुटाके बढ़ा देना।जिस जीव के प्रति तुम्हारा कोई भी सम्बन्ध नही है उस जीव के प्रति तुम्हारा ये भाव आ जाये कि डॉ.साहब एक बार इसकी आँख खुलवा दो, एक मिनिट भी यदि जिंदा रहता है तो मैं 10 लाख देने को तैयार हूँ, किसी अपरिचित को, किसी गुणी को, किसी धर्मात्मा को, तुम्हारा कोई स्वार्थ, ममत्वभाव नही है। जैसे ही तुमने ऐसा भाव किया उसी समय तुम्हे ऐसा कर्म का बन्ध हो गया कि अब कभी भी तुम अकाल में नही मरोगे, ट्रेन तुम्हारे ऊपर से निकल जायेगी, सबकुछ खत्म हो जाएगा तुम सकुशल निकल आओगे। ऐसा एक भी व्यक्ति नही है जिसको मरने का दुःख न हो, ये डर सबसे बड़ा खतरनाक है, सारे डरो का इलाज है लेकिन मौत का कोई इलाज नही है। संसार का सबसे बड़ा सम्राट वह है जिसको मौत का भय न हो। पंचमकाल में मुनि बनना दुलर्भतम दुर्लभ है,कुन्दकुन्द भगवान ने कहा 7 भय से मुक्त हुए या नही। 7 भय -इह लोक भय-दुनिया क्या कहेगी, दुनिया क्या करेगी, दुनिया क्या सोच रही है। परलोक भय-यदि मर गया तो कहा जाऊँगा। पता नही मेरी गति क्या होगी। जिस व्यक्ति ने जीवन मे कोई धर्म न किया हो उसको परलोक का भय बहुत सताता है। गुप्ति भय- कंही मेरे कोई पाप उजागर न हो जाये, मेरे ह्रदय मे क्या चल रहा है कोई वांच न ले। तुम्हारी जिदंगी में कोई न कोई एक बात ऐसी जरूर है जिसको तुम छुपाए बैठे हो। माँ-बाप से छिपाकर बैठे हो, उनसे छिपा रहे हो जिन्होंने जन्म दिया।अरे गुरु और माँ-बाप के सामने हर व्यक्ति नंगा रहता है। कितने लोग है जो माँ-बाप से छुपाकर के ससुराल में जमा करते है, जन्म देने वाले माँ बाप से ज्यादा विश्वास किसका है, एक दिन वो आएगा कि तुम्हारे पास छिपाने लायक भी नही रहेगा। कभी देव-शास्त्र-गुरु के सामने गरीब मत बनना।कभी बड़ो से लेने का भाव नही करना। खासतौर से अपने खर्च के लिए। अपने से अधिक उम्र वालो से कभी पैर नही छुआना चाहे वह कोई भी क्यों न हो। जैनियों का भगवान खाता नही और दूसरों को भी खाने नही दे अर्थात वो वस्तु निर्माल्य हो जाती है। क्यों नही जाता जैनी मंदिर खाली हाथ। मात्र एक कारण है कि कंही भगवान को ये न लग जाये कि मैं गरीब हूँ। प्रत्येक स्त्री को अपने पति से, अपने बेटे से कुछ न कुछ छिपाकर जरूर रखना चाहिए।ये दोष नही है, बस उड़ाऊ-खाऊ नही होना चाहिए।वक्त मौका पर वही काम आता है। तुम्हारे पास में झोपड़ी है, झोपड़ी भी फ़टी है बरसाती है और बाजू में किसी के सेठ की हवेली बनी हुई है।कोई तुमसे पूछे तुम बहुत भाग्यहीन हो, तुम जन्म जन्म के पापी हो, तुम्हारे पास झोपड़ी है वो भी फ़टी हुई। तुम कहना कि मैं यह सब स्वीकार करता हूँ बस एक पुण्य मेरा कि मेरे पड़ोस में एक अमीर आदमी रहता है, जब वो सामने से निकलता है मैं कहता हूँ कि ये है जन्म जन्म का धर्मात्मा, जन्म जन्म का दानी।मेरा शगुन हो जाता है। हर गरीब को अमीर आदमी को शगुन मानना है, ईष्या नही करना, बाजू की हवेली को शगुन मानो कि मेरे पड़ोस में एक पुण्यात्मा रहता है,जिसने कभी मन्दिर बनाये होंगे। अपने से अधिक पुण्यात्मा को, अधिक गुणवान को पीठ मत दिखाना।हम से अधिक करने वाले से ईष्या नही, उसको अभाव नहीं करना है, उसके प्रति प्रमोद भाव लाना है।
संकलन – विनोद छाबड़ा “मोनू” एवम शुभम जैन ‘पृथ्वीपुर’

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