राग-द्धेष ओर अपना-पराया बंद नहीं होने तक जारी रहेगा भव भ्रमण: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जिनवाणी के अलावा ऐसा कोई मंत्र, तंत्र या जप नहीं है जो पाप को खत्म कर सके। वितराग प्रभु की जिनवाणी का श्रवण करके ही आधि, व्याधि मिटाकर समाधि की ओर प्रस्थान किया जा सकता है। कर्मो को क्षय कर मोक्ष जाने की राह जिनवाणी ही दिखाती है। भव भम्रण समाप्त करने का एक मात्र उपाय जिनवाणी है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में शनिवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह पवनजय सती अंजना से मिलने आधीरात उसके महल में पहुंचते है तो वह उन्हें पहचान नहीं पाती है ओर मिलने से मना कर देती है। पवनजय उसकी भावना को देखते है तो उनको लगता मैने बहुत गलत किया। अंजना ने 12 वर्ष कैसे व्यतीत किए होंगे। उनका मित्र कहता है अभी कुछ नहीं बीता अपनी गलती मान लो ओर उससे क्षमा मांग लो। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि संसार में तीन तरह के लोग निन्दनीय, वंदनीय ओर अभिनंदनीय श्रेणी में आने वाले रहते है। इनमें निंदनीय को निम्न, वंदनीय को उच्च और अभिनंदनीय को उत्कृष्ट माना जाता है। निंदा कार्य करने वाले को निंदनीय माना जाता है तो धर्म व सेवा के लिए समर्पित रहने वालों को वंदनीय माना जाता है। उन्होंने कहा कि सभी अवगुण खत्म कर अष्ट कर्मो का क्षय कर तीर्थंकर गौत्र का बंध करने वाले वितरागियों को अभिनंदनीय माना जाता है। ऐसे अभिनंदनीय लोग ही मोक्ष जा सकते है। जब तक राग-द्धेष ओर अपना-पराया बंद नहीं होगा भव भ्रमण समाप्त नहीं हो सकता। साध्वीश्री ने कहा कि हमारे भीतर के दुर्गण मिटाने का लक्ष्य होने पर ही सफलता मिलेगी।
समीक्षाप्रभाजी ने कराया श्रावक के पांच अणुव्रतों की पालना का संकल्प
धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने श्रावक के 12 व्रतों की चर्चा करते हुए पांच अणुव्रत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का आगार सहित पालना का संकल्प कई श्रावक-श्राविकाओं को दिलाया। उन्होंने कहा कि व्रति श्रावक बनने पर ही हम स्वयं को जैन श्रावक-श्राविका कह सकते है। उन्होंने कहा कि श्रावक के व्रतों की पालना आसान है ओर हम पूरी तरह नही तो जितना संभव हो उतना नियमों की पालना तो करनी चाहिए। मर्यादा में बंधने पर उसका महत्व बढ़ जाता है। श्रावक व्रत स्वीकार करने से हम उन पापों से स्वयं को बचा पाएंगे जिनके मर्यादा के अभाव में अनजाने में भागीदार बन जाते है।
नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. की तपस्या गतिमान
धर्मसभा में बताया गया कि नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. की तपस्या गतिमान है ओर शनिवार को उनके 6 उपवास की तपस्या रही। श्रावक-श्राविकाओं ने उन तपस्या की सुखसाता पूछते हुए मंगलकामनाएं व्यक्त की। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में सोजत के प्रवीण बोहरा ने भी विचार व्यक्त किए। धर्मसभा में विजयराज भंसाली, सोजत के बाबूलाल बोहरा आदि का श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा स्वागत किया गया। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है।
कल मनाया जाएगा दादा-दादी दिवस
चातुर्मासिक आयोजन के तहत रविवार 6 अगस्त को दादा-दादी दिवस मनाया जाएगा। इसमें साध्वीवृन्द द्वारा प्रवचन के माध्यम से बताया जाएगा कि दादा-दादी कैसे अपने पोते-पोतियों के जीवन में अहम भूमिका निभाते हुए उन्हें धर्म से जोड़ने के साथ संस्कारवान बना सकते है। इस आयोजन में बुर्जुगों को अपने पोते-पोतियों या दोहते-दोहतियों के साथ आना है। रविवार को सुबह 8 से 8.30 बजे तक युवाओं की क्लास होगी। दोपहर 3 बजे से तप अनुमोदना के लिए चौबीसी का आयोजन होने से प्रश्नमंच का आयोजन नहीं होगा।