पाप की अनुमोदना करने पर दुःख ही आएगा हाथ: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। जिनवाणी श्रवण करने से आत्मा पवित्र होती है। क्रोध, मान, लोभ, माया आदि खत्म होने से हम यह पहचान कर सकते है कि हमारे लिए क्या अच्छा ओर क्या बुरा है। जीवन जितना मर्यादित होगा उतना ही आनंदित होगा। सुख भोग में नहीं त्याग में ही मिलता है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में शुक्रवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह पवनजय सती अंजना को बाहर निकाल देते है फिर भी उसके मन में उनके प्रति कोई दुराव नहीं होकर वह इसे अपने कर्मो की सजा मानती है। पति उसे नहीं चाहते फिर भी वह उनके लिए मंगलकामना करती है। उनके अवगुणों को छुपा अपने में अवगुण बताती है। अशांति होने पर हर्म आर्तध्यान करते है लेकिन अंजना सामायिक करती है। बुरा कार्य करने पर पवनजय को नींद भी नहीं आती है। उसे अहसास होता है कि मैने गलती की है। मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि आगम में हर समस्या व जिज्ञासा का समाधान छुपा हुआ है। हमे पाप की अनुमोदना करने से बचते हुए पुण्य व सद्कर्मों की अनुमोदना करनी चाहिए। पाप की अनुमोदना का फल भयंकर होता है ओर दुःख के अलावा कुछ हाथ नहीं आता है। हम सभी को इस दुनिया से जाना है ये तो तय है पर कहा जाना है ये किसी को नहीं पता है फिर हम कहते है मैं सब जानता हूं। उन्होंने कहा कि यहां से जाना तय होने से प्रतिदिन पुण्य को बढ़ाने एवं पाप को घटाने वाले कार्य करें। हमारी भावना राग-द्धेष रहित होकर उत्तम रहे। हमेशा याद रहे अज्ञानी व मोहग्रस्त जीव दुःख पाता है। उनके पीछे वह धर्म को भी छोड़ देता है। साध्वीश्री ने कहा कि छोड़ने की बात आती है तो हम धर्म सबसे पहले छोड़ते है ओर करने का नम्बर आता है तो सबसे लास्ट में धर्म याद आता है। जिसे छोड़ना कठिन है उसे छोड़ेंगे तो ही वास्तविक सुख की प्राप्ति होगी।
उपयोग की मर्यादा तय करने पर रहेंगे लाभ में: समीक्षाप्रभाजी म.सा.
धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि सुखविपाक सूत्र के माध्यम से श्रावक के 12 व्रतों में से अपरिग्रह व्रत की चर्चा करते हुए कहा कि जितना परिग्रह करेंगे उतना दुःख बढ़ेगा। उपयोग की जितनी मर्यादा तय करेंगे उतना लाभ में रहेंगे। उन्होंने जमीकंद त्याग करने या मर्यादा तय करने का आग्रह करते हुए कहा कि बिना जमीकंद का भोजन ही जैन फूड कह सकते है। आलू के चिप्स जैसे मुंह के स्वाद के लिए अनंतकाय जीवों की विराधना कर रहे है। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा.,नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है।
रविवार को पोते-पोतियों के साथ प्रवचन में है आना
चातुर्मास में 6 अगस्त को दादा-दादी दिवस मनाया जाएगा। प्रवचन के माध्यम से बताया जाएगा कि दादा-दादी कैसे अपने पोते-पोतियों के जीवन में अहम भूमिका निभाते हुए उन्हें धर्म से जोड़ने के साथ संस्कारवान बना सकते है। इस आयोजन में बुर्जुगों को अपने पोते-पोतियों के साथ आना है। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर 17 अगस्त को देश में एक लाख आठ हजार आयम्बिल आराधना में भीलवाड़ा के रूप रजत विहार से भी अधिकाधिक सहभागिता हो इसके लिए सभी प्रयास करे। इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हर घर से कम से कम एक आयम्बिल इस दिन अवश्य हो इसके लिए प्रेरणा प्रदान की जाए। आयम्बिल की व्यवस्था सुकलेचा परिवार द्वारा की जाएगी।