अशोक नगर। मन का स्थिर होना हमेशा सभी को शुकून देता है। मन को स्थिर करने के लिए मन को लगाने के लिए मंत्र जाप करना चाहिए। जाप आपको शान्ति प्रदान तो करती है और इस भव के साथ परभव को भी सुधारने वाली है। जप तप को सभी धर्मों में श्रेष्ठ माना गया है। प्रायः सभी शास्त्रों में किसी ना किसी रूप में इसका उल्लेख भी मिलता है। तो मन को एकाग्र कर णमोकार मंत्र का जाप सभी को प्रतिदिन करते रहना चाहिए, क्योंकि कि आज का मानव मानसिक रूप से ज्यादा दुखी हैं। मानसिक दबाव से मुक्त होने का जाप सबसे सरल तरीका है, जिसे आप अपना सकते हैं। उक्त आश्य के उद्गार सुभाषगंज मैदान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री आर्जव सागर जी महाराज ने व्यक्त किए।
संसारी प्राणी धर्म ध्यान ही नहीं कर पा रहा
उन्होंने कहा कि यह परम सत्य है कि आत्मा की मुक्ति बिना सम्यक्-ध्यान के संभव नहीं है, लेकिन वर्तमान में रौद्र-ध्यान की स्थिति इतनी चरम सीमा पर है कि संसारी प्राणी धर्म-ध्यान ही नहीं कर पा रहा। सम्यक्-ध्यान व धर्म ध्यान से पूर्व जब तक रौद्र-ध्यान का मतलब समझकर उससे मुक्त या उसे कम करने का पुरुषार्थ नहीं होगा, तब तक धर्म-ध्यान असंभव है। धर्म-ध्यान तभी पावन-पवित्र हो पाएगा जब हम आर्तध्यान व रौद्र-ध्यान से दूर हो सकेंगे।इनमें भी सबसे अधिक खतरनाक रौद्र-ध्यान है जो आत्मा को घोरपतन की तरफ ले जाने में माध्यम बन रहा है। संसारी व्यक्ति का एक भी दिन ऐसा नहीं होता जब वह रौद्र-ध्यान से मुक्त हो पाता हो। अतएव वह धर्मध्यान न होने से अशांत, परेशान, तनावयुक्त होकर उल्टा भौतिक पदार्थों के संग्रह में ही लग रहा है लेकिन वह अज्ञानी यह नहीं जानता कि ” त्याग में सुख है, राग में दुख देखा जाता है जिस प्रकार एक पतंगे की जिन्दगी दीपक की लौ में और मकड़ी की खुद के ही जाल में फंसने से खत्म होती है, वही दशा उसकी होगी। ज्ञानी व तत्त्व दृष्टि का भेद-विज्ञान समझने वाले महापुरुषों ने इसीलिए यह सीख दी है कि धर्म करने से पूर्व उसका सही स्वरूप समझें तभी तो उसका वास्तविक लाभ आत्मा को मिलेगा। ध्यान रखना हिंसादिक पाप रूप रौद्र-ध्यान जीवन में सबसे बड़ा बाधक तत्त्व है और इससे छुटकारा पाए बिना धर्म ध्यान का कोई मतलब नहीं है।