दिखावे की प्रवृति हावी होने से जीवन का मूल लक्ष्य ही भूले: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। आवश्यकता की पूर्ति हो सकती लेकिन इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती। पाप का सहारा इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही लेना पड़ता है। दिखावे की प्रवति इतनी हावी हो चुकी है कि हम मूल लक्ष्य ही भूल गए है। दिखावे की इच्छा ही तनाव का मूल होती है। हम आकृति से मानव बन गए है लेकिन हमारी प्रकृति उस अनुरूप नहीं रह गई है। प्रकृति से मानव ओर कर्म से जैन बनने की जरूरत है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में गुरूवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. सानिध्य में मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम चिंतन करे कि हम कौन है ओर किस दिशा में जा रहे है। धर्म के लिए पैसा नहीं होता लेकिन अधर्म में उड़ाने के लिए कोई कमी नहीं होती। ये हमेशा याद रहे कि दुनिया कभी भी भोग में डूबे रहने वालों को नमन नहीं करती। दुनिया का सिर त्यागियों के समक्ष झुकता है। आकृति के साथ प्रकृति से भी मानव बनना होगा। चातुर्मास हमे पाप से निवृत होकर धर्म में डूबने की प्रेरणा देता है। धर्मसभा में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि संसार में रहते हुए ही जिनवाणी श्रवण का सुअवसर मिलता है। हमारा जीवन कमल की तरह होना चाहिए जो विपरीत परिस्थितियों में भी खिलना जानता है। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह अंजना अपने मन की बात बसंता को बताती है ओर कहती है कि कर्म के लिखे को कोई टाल नहीं सकता। कर्म फल भोगने ही पड़ते है। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि धर्म के लिए देने में कभी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। धर्म के लिए जितना देंगे उससे दोगुणा हमे वापस प्राप्त होंगे लेकिन देते समय किसी से होड नहीं कर अपनी क्षमता अवश्य देखनी चाहिए। धर्म के प्रताप से ही हमको सब मिल रहा है। जिस दिन धर्म नहीं बचेगा कूछ नहीं बचेगा। धन की सद्गति दान में ही मानी जाती है। हम सुख में भी धर्म को याद रखे तो जीवन में दुःख का आगमन ही नहीं हो।
सुश्राविका माधुरी के नौ उपवास का प्रत्याख्यान, श्रीसंघ ने किया सम्मान
धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा.,नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में बापूनगर निवासी सुश्राविका माधुरी हिंगड़ ने नौ उपवास के प्रत्याख्यान लिए तो हर्ष-हर्ष,जय-जय का जयघोष हुआ। उनका तेला तप करने का संकल्प लेने वाली श्राविकाओं के साथ श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा स्वागत किया गया। शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है। चातुर्मास में 6 अगस्त को दादा-दादी दिवस मनाया जाएगा। प्रवचन के माध्यम से बताया जाएगा कि दादा-दादी कैसे अपने पोते-पोतियों के जीवन में अहम भूमिका निभाते हुए उन्हें धर्म से जोड़ने के साथ संस्कारवान बना सकते है।
हर घर से आयम्बिल तप करने की दी प्रेरणा
धर्मसभा में जैन कॉन्फ्रेंस महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पा गोखरू, धनोप के तेजमल लोढ़ा आदि ने भी विचार व्यक्त किए। श्रीमती गोखरू ने बताया कि श्रमण संघीय आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर 17 अगस्त को देश में एक लाख आठ हजार आयम्बिल तप आराधना में भीलवाड़ा से भी अधिकाधिक सहभागिता हो इसके लिए भी प्रेरणा प्रदान की जा रही है। इन्दुप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हर घर से कम से कम एक आयम्बिल इस दिन अवश्य हो इसके लिए प्रेरणा प्रदान की जाए। साध्वीवृन्द के सान्निध्य में आयम्बिल आराधना से जुड़ा बैनर भी जारी किया गया। गोखरू ने कहा कि मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की जयंति के उपलक्ष्य में संगठन द्वारा प्रश्नमंच प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाएगा। धर्मसभा में अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति के पदाधिकारियों द्वारा किया गया।