Saturday, November 23, 2024

आधुनिक युग में चमत्कार हैं जैन साधु

दिगम्बर जैन साधु, श्रमण वर्तमान में सचमुच में धरती के देवता हैं। उनकी कठिन चर्या देखकर लोग दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं। सिद्धपद के इच्छुक जो महापुरुष पंंचेन्द्रिय के विषयों की इच्छा समाप्त करके सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर देते हैं तथा ज्ञान, ध्यान और तप में सदैव तत्पर रहते हैं, वे ही मुक्तिपथ के साधक होने से सच्चे साधु कहलाते हैं। वे महामना दिगम्बर अवस्था को धारण कर लेते हैं। आज के समय का सबसे बड़ा चमत्कार है दिगम्बर जैन साधु क्योंकि आज के आधुनिक जीवन में हर कोई अपने शरीर को सजाने -संवारने में लगा है, तरह- तरह के फैशनेबल कपड़े पहनने में लगा है, बालों को भी अपने-अपने ढंग से बनवाने में लगा है, ना जाने कितनी तरह के शैम्पू और साबुनों का इस्तेमाल कर रहा है, क्रीम- पाउडर और खूशबूदार तेलों को बदन पर रगडने में लगा है, दिन रात तरह- तरह के व्यंजनों को खाने में लगा है ऐसे में दिगम्बर साधु आज भी दिगम्बर अवस्था में रह कर एक समय ही आहर- पानी लेकर त्याग- तपस्या में लीन रह कर समाज और संस्कृति को सदमार्ग दिखा रहे हैं। धर्म- पुण्य कार्यों को करने के लिए लगातार प्रेरित करने में लगे हैं। इस कलिकाल में, आधुनिक युग और पश्चिम संस्कृति के प्रभाव से घिरे इस समाज के बीच में दिगम्बर साधुओं का रहना ही अपने आप में ही किसी चमत्कार से कम नहीं है। कडाके की सर्दी हो, भीषण गर्मी या तेज बरसात हो आम व्यक्ति हर तरह की सुविधाओं से लैस होकर निकलता है। सर्दी में ऊनी वस्त्रों से लद जाता है, गर्मी में पंखे, कूलर और ऐसी का इस्तेामल करता है, बरसात में छाते और रैनकोट का इस्तेमाल करता है फिर भी वह परेशान दिखाई देता है लेकिन इसके उलट दिगम्बर साधु बारह महीनों सर्दी, गर्मी और बरसात में एक ही अवस्था में रह कर पैदल ही विहार करते हैं। यह चमत्कर इसलिए सम्भव है कि दिगम्बर साधु सिर्फ और सिर्फ परमात्मा की भक्ति करता है, परमात्मा के चरणों में रहता है, सांसारिक मोह- माया से परे रह कर त्याग और कड़ी तपस्या करता है।
जो धमनी में लहू जमा दे शीत दिसम्बर सहते हैं, विजय काम पर पाने वाले संत दिगम्बर रहते हैं ||
सभी सम्प्रदाय के लोग दिगम्बर जैन संत की कठोर तपश्चर्या से को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। हाल ही में बागेश्वर धाम के बाबा धीरेन्द्र शास्त्री जी ने अपने वक्तव्य में कहा था कि दिगम्बर जैन साधु की चर्या वर्तमान में विश्व के लिए शोध का विषय है।
महाभारत में कहा है कि युद्ध के लिये प्रस्थान के समय श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
‘‘आरोरूह रथं पार्थ ! गांडीवं चापि धारय।
निर्जितां मेदिनीं मन्ये निर्ग्रंथो गुरुरग्रत:।’’
हे अर्जुन ! तुम रथ पर चढ़ जाओ और गांडीव-धनुष को भी धारण करो । मैं इस पृथ्वी को जीती हुई ही समझ रहा हूँ चूंकि निर्ग्रंथ मुनि सामने दिख रहे हैं।
ज्ञानार्णव-चूंकि इस पृथ्वीतल पर विहार करते हुए ये मुनि पंचेंद्रिय से लेकर वनस्पति, वृक्ष, अग्नि आदि एकेंद्रिय जीवों तक की रक्षा करते हैं उन्हें अभयदान-जीवनदान देते हैं, ये परमकारुणिक मुनि विश्ववंद्य, जगद्गुरु भी कहलाते हैं क्योंकि इनका धर्म सभी जीवों का हित करने वाला होने से वह सार्वधर्म या विश्वधर्म कहलाता है।
जीवनचर्या- ये जिन गुणों का पालन करते हैं उन्हें मूलगुण कहते हैं। जैसे मूल के बिना वृक्ष की एवं नींव के बिना महल की स्थिति नहीं है उसी प्रकार से इन गुणों के बिना कोई भी व्यक्ति वेषमात्र से साधु नहीं हो सकता है। इन मूलगुणों के अट्ठाईस भेद होते हैं।
पांच महाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रियनिरोध, केशलोंच, षट् आवश्यक, आचेलक्य, अस्नान, क्षितिशयन, अदंतधावन, स्थितिभोजन और एकभक्त।
ऐसी कठोर चर्या के पालक दिगम्बर जैन संतों के बारे में कोई अनर्गल प्रलाप करे तो यह श्रमण संस्कृति के लिए खतरा और समाज को चिंता तथा मंथन का विषय है।
ऐसे महान दिगम्बर साधुओं पर वर्तमान में कतिपय असामाजिक तत्व अभद्र टिप्पणी कर रहे हैं जो घोर निंदनीय है। पिछले दिनों कर्नाटक में आचार्य श्री कामकुमार नंदी जी की निर्मम हत्या उसके बाद हाल ही में एककथावाचक द्वारा जैन संतों के दिगम्बर स्वरूप पर की गई टिप्पणी और कटनी में एक महिला द्वारा दिगम्बर जैन साधु की प्रवचन सभा में पहुँचकर अभद्र, अशोभनीय टिप्पणी करना घोर निंदनीय है। कथावाचक द्वारा जैन संतों के दिगम्बर स्वरूप पर की गई टिप्पणी घोर निंदनीय तो है लेकिन हम उनकी बात को इतना महत्व ही क्यों दे रहे हैं! जैन साधु आत्मकल्याण के लिए दिगम्बर स्वरूप धारण करते हैं और राग- द्वेष से परे अपनी तपस्या में लीन रहते हैं.. यदि ऐसी आलोचनाओं की चिंता की होती तो कोई भी साधु किसी भी युग में मुनि भेष न धारण कर पाता!
संतों की सुरक्षा के लिए हों कटिबद्ध :
समाज को भी गंभीरता से चिंतन करना होगा। साधु संतों के आहार-विहार-निहार के लिए जागरूक होना होगा ताकि किसी अप्रिय घटना से बचा जा सके। साधु, संतों के विहार में अक्सर समाज की लापरवाही देखी जाती है जिसपर चिंतन जरूरी है। जब भी साधु का विहार हो संबंधित एरिया की जैन समाज का दायित्व बनता है कि स्थानीय पुलिस प्रशासन को भी उनके विहार कार्यक्रम की डिटेल दे, यदि पुलिस प्रशासन के संज्ञान में साधु का विहार होगा तो वह सुरक्षा के इंतजाम भी करेगी , साधु की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रशासन से कहीं अधिक समाज की है ।
जब कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो हम निंदा आदि प्रस्ताव पास करके हम कुछ नहीं कर पा सकने की निराशा से ऊपर उठने की कोशिश और कुछ तो किया की संतुष्टि में अक्सर एक साथ जी लेते हैं । आखिर यह सब कब तक! अब हमारी समाज को निर्णायक फैसले लेना होगा।
हम अपनी विरासत बचाने को आगे आएं। इसकी रक्षा करने के लिए हमे संकल्पित होना होगा। मात्र प्रस्ताव पास करने या व्हाट्सएप, फेसबुक पर ज्ञान बाटने की आदत से बाहर निकलकर कुछ सार्थक निर्णायक कदम उठाना आज की महती आवश्यकता है।
साधु संस्था की गरिमा को बचाए रखना समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि दिगम्बर जैन धर्म की पहचान हमारे साधु संस्था से ही है।
यदि अब भी न जागे जो मिट जाएंगे खुद ही।
दास्तां तक भी न होगी, हमारी दस्तानों में।।
आज हम सभी को आत्मावलोकन करने की जरूरत है।
कुहासां आसमां पर छा रहा है और हम चुप हैं।
अंधेरा धूप को धमका रहा है और हम चुप हैं।।

डॉ. सुनील जैन संचय
ललितपुर, उत्तर प्रदेश

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