Saturday, September 21, 2024

बिना शुद्ध भावो के सुख की चाह व्यर्थ है: आचार्य विनिश्चयसागर

मनोज नायक/भिण्ड। प्रत्येक मनुष्य के मन में एक प्रश्न रहता है की भगवान से कुछ मांगना चाहिए या नहीं मांगना चाहिए। इस संबंध में जिनागम तो सीधा सा उत्तर देता है कि क्या सूर्य से धूप मांगनी पड़ती है? नहीं मांगनी पड़ती। जिस प्रकार सूर्य से धूप मांगनी नहीं पड़ती, सिर्फ उस धूप के संपर्क में आना पड़ता है। उस धूप को लेने योग्य स्थिति बनानी पड़ती है। सूर्य तो स्वमेव ही धूप देता है। वैसेही भगवान स्वमेव ही सबकुछ देते हैं। अगर आपको सूर्य से धूप नहीं मिल रही तो इसका सीधा सा मतलब है कि अभी आप कमरे में बंद बैठे हैं, अभी आप सूर्य के संपर्क में नहीं आए हैं। उक्त विचार बाक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चयसागर जी महाराज ने श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन चैत्यालय, बतासा बाजार भिण्ड में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री विनिश्चयसागर महाराज ने अपने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान की कृपा तो निरंतर बरसती रहती है और बरस रही है। बस आप बुरे भावो के, छल कपट के कमरे में बंद बैठे हैं। हे भव्यात्मा, कम से कम भगवान के सामने तो शुद्ध मन से, निष्कपट, निश्छल भाव से आओ। कम से कम यहां तो अपने कमरे की खिड़की व दरवाजे खोलो। तभी तो भगवान की कृपा अंदर प्रवेश करेगी। बंद कमरे में धूप की आस और बिना शुद्ध भावो से सुख की चाह करना व्यर्थ है। ज्ञातव्य हो कि बाक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चयसागर जी महाराज का पावन बर्षायोग श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन चैत्यालय मंदिर, बताशा बाजार भिण्ड में विभिन्न धार्मिक आयोजनों के साथ चल रहा हैं।

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