Sunday, September 22, 2024

धर्म का तात्पर्य आत्मा की पवित्रता से है: मुनि शुद्ध सागर

विमल जोला/निवाई। श्री दिगम्बर जैन बिचला मंदिर स्थित शांतिनाथ भवन में चातुर्मास कर रहे परम पूज्य मुनि श्री शुद्ध सागर जी महाराज ने अपने दैनिक प्रवचनों मे कहा कि धर्म राग मे नहीं वीतरागता मे है धर्म क्रिया काण्ड मे नहीं मन वचन काय की पवित्रता मे है। मुनि श्री शुद्ध सागर महाराज शांतिनाथ भवन में बुधवार को प्रवचन कर रहे थे उन्होंने कहा कि धर्म का सम्बंध शरीर से नहीं आत्मा से है। धर्म खाने पीने मौज उडा़ने मे नहीं, धर्म तो संयम तप और त्याग मे हैं। धर्म एक ऐसा मित्र है जिसने आज तक न धोखा दिया है, न दे रहा है, और न कभी भविष्य में दे सकता है। उन्होंने कहा कि धर्म का तात्पर्य आत्मा की पवित्रता से है अर्थात राग द्वेष मोह, स्वार्थ वासना,ईष्या कषायादि भावों से रहित आत्मा की निर्मल परणति का नाम ही धर्म है। वास्तविकता तो यह है कि कर्म और धर्म में महान अंतर है जो स्वाभाविक होता है वह धर्म है, और जो मान मर्यादाओ मे रुढि परम्पराओं मे बंध कर किया जाता है वह कर्म है। मुनि श्री ने कहा कि धर्म अंतरंग परणति से जुडा़ हुआ है और कर्म बाह्र शारीरिक क्रियाओं से सम्बंधित है। धर्म जाग्रत होता है और कर्म थोपा जाता है। चातुर्मास कमेटी के प्रचार संयोजक विमल जौंला ने बताया कि प्रवचन सभा से पूर्व आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज की तस्वीर के समक्ष श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्वलित कर मंगलाचरण किया। सभा के पश्चात मुनि श्री के समक्ष आचार्य श्री का महावीर प्रसाद पराणा पुनित संधी राकेश संधी संजय जैन नवरत्न टोंग्या हेमचंद संधी धर्म चंद चंवरिया सहित अनेक श्रद्धालुओं ने अर्ध्य चडा़कर पूजा अर्चना की।

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