सुनिल चपलोत/चैन्नाई। शरीर को सुख देने से आत्मा का उत्थान नही सकता है मंगलवार साहूकार पेठ में साध्वी धर्मप्रभा ने व्याख्यान मे श्रध्दालूओ को धर्म संदेश देतें हूए कहा कि मनुष्य का हर कदम मौत कि तरफ जा रहा है फिर वो शरीर का सुख चाहता है। मनुष्य जन्म लेते ही अपनी मौत का टिकट साथ लेकर आता है। लेकिन मनुष्य मौत का विचार करें या न करें, वह आये बिना न रहेगी। मरण निश्चित है और बातें भले ही अनिश्चित हों। सूर्य अस्ताचल की ओर गया कि हमारी आयु का एक अंश खा जाता है। जीवन छीज रहा है, एक- एक बूँद घटता जा रहा है। जीवन, मृत्यु फिर जीवन, यह क्रम चला जा रहा है। मनुष्य यह मत समझ ले कि मरने के बाद उसे छुट्टी मिल जायगी। इस जीवन की गंगा तो प्रभू से निकल कर प्रभू में ही मिलना है। सुख-दुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, आशा-निराशा की जैसी जोड़ी है वैसी ही जन्म-मृत्यु की, न कि जीवन मृत्यु की। जो जन्मता है वह मरता है,जो मरता है वह जन्मता है। लेकिन इस आत्मा के कल्याण का केवल एक ही उपाय है और वो भगवान को जान लेना वह तभी संभव हो सकता है। जब मनुष्य चौबीस घंटो मैं से एक घड़ी भी एकाग्रचित्त और निस्वार्थ भाव से भी प्रभू का स्मरण करले तो अपनी इस आत्मा को परमात्मा मे विलय कर सकता है। वरना यह आत्मा जन्म -मरण के चक्रव्यूह से बाहर नही निकल पाएगी। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा कि मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है जो चौबीस घंटें किस ना किसी क्रियाओं में संलग्न रहता है। जो क्रिया मनुष्य जीवन मे करता वो शुभ भी होती है और अशुम भी उन्ही क्रियाओं के द्वारा मानव पुण्य और पाप के कर्म बंधन करता है। इंसान फल पुण्यवानी बांधना चाहता है, परन्तु क्रियाएं विपरीत करता है। जब तक मनुष्य के मन में राग द्वेष आश्क्ति रहेगी तब कर्मों कि निर्जरा नही हो सकती है परमात्मा कि भक्ति से आत्मा तिर सकती है शरीर को सुख देने से आत्मा का विकास रूक जायेगा, और संसार मे आत्मा भटकती रहेंगी। इसदौरान श्री एस.एस. जैन संघ साहूकार पेठ के अध्यक्ष एम.अजितराज कोठारी कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया, सज्जनराज सुराणा, सुरेश डूगरवाल, महावीर कोठारी, बादल चन्द कोठारी, मोतीलाल ओस्तवाल, अशोक सिसोदिया, शम्भूसिंह कावड़िया, कमल खाबिया, जितेन्द्र भंडारी आदि पदाधिकारियों और सैकड़ों श्रध्दालूओ की धर्मसभा में उपस्थिति रही।