लाल डायरियों में,
लाल रसीले टमाटरों,
का हिसाब है।
साहब की आलाकमान से
मोहब्बत बेहिसाब है।
क्या? लोकतंत्र की ये
कोई नहीं किताब है।
या फिर विपक्षियों को
होने वाला इससे
कोई लाभ है।
जननायक करते नहीं
आजकल मुद्दों की बात है।
जनता ने संभाल कर
रखा हुआ है।
एक-एक जनप्रतिनिधि का
हिसाब है।
सूत समेत लौटा देने को
अब जन-जन बेताब है।
अबकी बार मिलने वाला है,
सभी को एक नया खिताब है।
डॉ. कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार