आगरा। पूज्य ने निर्यापक श्रमण मुनि श्री 108 सुधासागर महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि माता पिता के लाड प्यार से बेटा बर्बाद होता है, और 4 शिष्य बर्बाद होता गुरु की कृपा से, गुरु के आशीर्वाद से, महाराज श्री ने कहा कि बर्बाद होंगे वे माता पिता बेटे की प्रशंसा करेंगे। आर्शीवाद मिलने कर बर्बादी हो रही हैं। महाराज श्री ने इस ओर ध्यान दिलाया कि यदि तुमने गुरु को डांटने व माता पिता को थप्पड मारने का अधिकार दिया वो थप्पड ही तुम्हारे लिए आर्शीवाद का काम करेगा,गुरु के मुख से बुराई,पापी कहा गया तो कल्याण है। उन्होंने आगे कहा तुमने किसी को लूटा तो तुम्हें तो अच्छा लग रहा है सामने वाले को दुःख हो रहा है कि तुम्हें खुशी हो रही है, यदि सामने वाले को दुःख हो रहा है तो ये दुःख तुम्हारे पास लौटकर आयेगा। महाराज श्री ने कहा पापी बनना जितना कठिन है पुण्यात्मा बनना बहुत सरल है। उन्होंने कटाक्ष किया पता नहीं आपके झगड़ टंट्टे देखकर लगता है कि कितना कठिन है जिन स्थानों पर आप एक घंटे नहीं रह सकते वह डाकूओं का जीवन निकल जाता है। कितना कठिन है रात में भी भागना पड़ता है। शांति सागर महाराज ने कहा था कि संयम धारण करने में कोई कठिनाई नहीं है। उन्होंने आगे कहा व्रत में धर्म में संयम मार्ग में कोई कठिनाई नहीं है। पूज्य मुनि श्री ने आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के विषय में बताते हुए कहा कि आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने कहा था कि संयम धारण करने में कोई कठनाई नहीं है बहुत सरल है। हम लोगों को कोई चिंता नहीं है आराम से बैठे हैं तुम्हारे लिए हमें पता चले की डाकू तुम्हारे संबंध में विचार कर रहे थे तो बोलो तुम्हारी क्या दशा होगी। और इसके विपरीत आपको पता चले कि महाराज जी मेरा नाम ले रहे थे मेरे संबध में विचार कर रहे थे आपको पता चले तो आप नाच उठगे महाराज जी मेरे संबध में विचार कर रहे थे मैं धन्य हो गया अब मेरा कुछ अच्छा होने वाला है मेरे लिए कुछ कह रहे थे मैं धन्य हो गया महाराज जी के मुख पर मेरा नाम आया है ये पुण्यात्मा है। जगत में कुछ नया हैं ही नहीं-पेड़ ने कर दिया ऐलान पूराने पत्तों को जाना होगा नये पत्तों को स्थान देना है परिवर्तन है वे पुराने पत्ते वहीं सड़कर उसी स्थान पेड़ को खाद का काम करता है। एक उदाहरण से महाराष्ट्री ने समझाया की एक बुजूर्ग व्यक्ति मर रहा था लोग कहते हैं कि चलो बुजूर्ग से आशीर्वाद लें आयें वहीं जीव उसी नगर के राजा के यहां जन्मा तो उसे आशीर्वाद देने निकल पड़े नया कुछ नहीं है पर्याय का परिवर्तन है नया कुछ है ही नहीं है नये पुराने में आंनद नहीं है दुनिया में कुछ नया हैं ही नहीं है बालक और बूढ़े के बीच में जो है उसे समझ लेना, जैन दर्शन में रोना भी कषाय है, हंसना भी कषाय है, हंसने में आंनद मनाने वाले रोने को तैयार रहें।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी