गुंशी, निवाई। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी का 29 वां साधनामय चातुर्मास के अंतर्गत श्री दिगंबर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी क्षेत्र का विकास तेज गति से चल रहा है। गुरु माँ की दैनिक चर्या में मौन साधना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, सामायिक, मंत्र साधना एवं उपवास जैसे विविध तपों का समावेश है। प्रातःकालीन देववंदना व सहस्रनाम की भक्ति के रसास्वादन से ही दिन की शुरुआत होती है। शांतिनाथ प्रभु के दरबार में आज की शांतिधारा करने का सौभाग्य सुरेश जी टोंक, कैलाश जी जस्सू का खेडा एवं जन्मदिन के शुभअवसर पर महेश जी मोटुका वालों ने प्राप्त किया। तत्पश्चात शुभाशीष के रूप में गुरू माँ ने कहा कि बीज को फल बनने का इंतजार करना पड़ता है वैसे ही भक्ति का फल पाने के लिए इंतजार करना चाहिए। इंतजार का फल मीठा होता है। इस शरीर से पूजा, भक्ति, सेवा, उपकार, दान आदि शुभ कार्य करके जीवन सफल बनाना है। यदि हम अच्छा करेंगे तो अच्छा व बुरा करेंगे तो बुरे फल को प्राप्त करेंगे। तात्कालिक फल चाहिए तो घास – फूस मिलेगी और उत्तम नारियल जैसा चाहिए तो इंतजार करना पडेगा।