गुरु गोविंदसिंह के दोनों बच्चे कुर्बान हो गए पर अपने धर्म मार्ग से डिगे नहीं: साध्वी धैर्यप्रभा
ब्यावर। बिरद भवन में गत तीन दिवस से चल रहे बलिदान के मार्मिक प्रवचन को धर्मसभा को बताते हुए महासाध्वी धैर्यप्रभा ने कहा कि राग द्वेष कर्म बीज हैं। भगवान महावीर नेब सभी को प्राणी मात्र की सेवा और प्रेम की शिक्षा दी हैं। जीवन में अनेकों कष्ट आते हैं परन्तु जो सिंह के भांति अपने धर्ममार्ग पर स्थिर रहता हैं डिगता नही है वही असली वीर होता हैं। हर परिस्थिति को मुस्कराहट के साथ सहन करने के लिए तैयार रहें। गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों बच्चे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के दोनों बच्चों ने असहनीय दर्द एवं पीड़ा को सहा, अपने प्राणों को धर्म के लिए न्यौछावर करने के लिए हँसते हँसते तैयार हो गये पर कभी अपने धर्म परिवर्तन नहीं किया। आज हम थोड़ी से गर्मी सर्दी के सामने भी असक्षम हो जाते ही परन्तु वो मात्र 7 वर्ष और 9 वर्ष के बालको ने बड़ी निडरता के साथ कष्टों को सहा। उनके प्राण ले लेने के बाद भी मुगलों ने उनके पार्थिव शरीर को किसी को भी अंतिम संस्कार नही करने दिया तब टोडरमल जैन आगे आये। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण सम्पति देकर कई सैकड़ो स्वर्णमुद्राओं से उन महान शहीद के अंतिम संस्कार हेतु 4 गज जमीन खरीद उनका अंतिम संस्कार किया। उन महान टोडरमल का भी बाद में मुगलों ने सपरिवार हत्या कर दी थी। महासती से उन बच्चों पर घटे घटना क्रम का वर्णन सुनकर उपस्थित जनसभा के रोंगटे खड़े हो गये। महासती वृन्द द्वारा जब वेला आ गया ऐ दादी माँ जुदाई दा, असा अज्ज मुड़ के ओना नहीं, गीत बोला गया उपस्थित जनसभा की आंखे नम हो गई। महासती से बलिदान की गौरव गाथा एवं प्रवचन सुनने के लिए न सिर्फ जैन बल्कि सिख समुदाय के अनुयायी भी बड़ी संख्या में पहुंचे। गुरु की बलिदान गाथा का वर्णन सुनकर उन सभी ने महासती की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि यह बलिदान गाथा को जिस मार्मिक रूप में कहा ऐसा प्रतीत हूआ की यह सब कुछ हमारी आंखों के समक्ष हो रहा हैं। उन्होंने साध्वी वृन्द, दिवाकर संघ एवं जैन समाज को ढेर सारा आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर सिख समुदाय के प्रधान साहिब सिंह जी, मुख्य पुजारी हरदेवसिंहजी , सेवादार संतोख सिंह जी, सेवादार नरेंद्र सिंह जी, जसपाल जी हुड्डा, लक्ष्मण सिंह जी हुड्डा, राम भाई पंजाबी, गुरुबक्स सिंह जी मुच्छल, जसपाल सिंह जी छाबड़ा, जगजीत सिंह जी हुड्डा, जोगेंद्र सिंह जी छाबड़ा, जसवीर सिंह जी हुड्डा, मानसिंह जी मुछल, श्री मति राजेंद्र कौर, कांता कौर, इकबाल कौर, स्वर्ण कौर, जसपाल कौर व जैन समाज के सैकड़ों गणमान्य नागरिक व महिलाए उपस्थित थी। सभी ने इस बलिदान गौरवगाथा को सुनकर आने आप को सौभाग्यशाली माना। कोटा, चितौड़, डूंगला, जयपुर आदि जगहों से पधारे श्रावको ने भी व्यख्यान श्रवण कर महासती के समक्ष चातुर्मास की विनती की।