जैन धर्म का मूल मंत्र अहिंसा है: भारत गौरव आर्यिका विज्ञाश्री माताजी
विमल जोला/निवाई। सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में श्री दिगम्बर जैन सहस्त्रकूट विज्ञा तीर्थ गुन्सी मे गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने केंशलोच किया। केंशलोच कार्यक्रम से पूर्व श्रद्धालुओं ने मूलनायक भगवान शांतिनाथ जी के अभिषेक किए एवं विश्व में शांति की कामना के लिए आर्यिका माताजी के मुखारविन्द से क्षीर सागर के जल से वृहद शांतिधारा की गई। जैन समाज के प्रवक्ता विमल जौंला ने बताया कि केंशलोच कार्यक्रम के तहत श्रद्धालुओं ने नित्य प्रति पाठ, दर्शन पाठ, विनय पाठ, शांतिनाथ चालीसा, महावीर चालीसा, सहित अनेक प्रकार के अनुष्ठान संपन्न हुए। इस दौरान गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसार में मनुष्य के अंदर कोई भी आधि व्याधि हो उसका सम्पूर्ण निराकरण शांति प्रभु के चरणों में ही शांत हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि इन शांति प्रभु के चरण भक्तों को किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं इनके शरण में जो भी आता है, संसार सागर पार कर लेता है। आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ने केंशलोच कार्यक्रम के दौरान कहा कि सहस्त्रकूट विज्ञा तीर्थ पर विराजित शांतिनाथ प्रभु का चमत्कार अलौकिक है प्रभु के चरणों में जो भी अपनी भावना लेकर आता है उसके सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। माताजी ने कहा कि जैन धर्म का मूल मंत्र अहिंसा है। अहिंसा से ही मानव जीवन का उद्धार है। उन्होंने अहिंसा महाव्रत की रक्षा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में केंशलोच क्रिया सम्पन्न की।