Sunday, November 24, 2024

मां-बेटी जैसा हो सास-बहु में प्यार, कोई परिवार न टूटे, सास-बहु कभी न रूठे: डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.

परिवार टूटता है तो कलेजा तड़फता है, बहु को बेटी माने सास: डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा.

रूप रजत विहार में सास-बहु दिवस आयोजन में लाल-पीली साड़िया पहन उमड़ी श्राविकाएं

सुनील पाटनी/भीलवाड़। धर्मनगरी भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में रविवार को सास-बहु दिवस मनाया गया तो सहभागी बनने के लिए श्राविकाएं उमड़ पड़ी ओर दिल छू लेने वाला भावनात्मक माहौल बन गया। पीले रंग की साड़ी पहन कर आई सासु मां ओर लाल रंग की साड़ी में आई बहुरानी में एक-दूसरे के प्रति प्रेम व भावनाओं का सागर उमड़ रहा था। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने सास-बहु को संकल्प कराया कि सासुजी हमेशा अपनी बहुरानी को बेटी समान प्यार देंगे ओर बहु अपनी सासुजी को माता मान उसी समान आदर-सम्मान देंगी। उन्होंने सास-बहु के रिश्तों की व्याख्या करते हुए कहा कि ये रिश्ता परिवार की धुरी होता है। इसमें समन्वय कायम हो गया तो हमारा परिवार स्वर्ग से सुन्दर ओर सपनों से भी प्यारा होता है ओर इनका समन्वय बिगड़ गया तो पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। बहु सास से और सास बहू से ना रूठे तो कोई परिवार कभी न टूटे ये कामना हम सब करेंगे। साध्वीश्री ने कहा कि हम अपने सपनों की सास या बहु चाहते है तो पहले हमे भी वैसा ही बनना होगा। सासुजी को ये ध्यान रहना चाहिए कि बहु उनके बेटे के लिए आई है वह तो उसे फ्री में मिली है ऐसे में जो मिले उसे स्वीकार करे और ज्यादा अपेक्षा नहीं रखे। इसी तरह बहु को ये सोचना चाहिए कि उसे इतना सुंदर सुशील संस्कारवान पति मिला है तो वह उसकी सासुमां के देन है ओर उसे अपनी मां के समान पूरा सम्मान व आदर दे। साध्वी दर्शनप्रभाजी ने कहा कि जब रिश्ते अच्छे नहीं होते तो जिंदगी दुःख भरी कहानी बन जाती है। सास हो या बहु दोनों को कभी एक-दूसरे की बुराई घर से बाहर किसी के समक्ष कभी नहीं करनी चाहिए। आज की सास कल बहु थी ओर आज की बहु कल सास होगी इसलिए ये हमेशा याद रखे जैसा हम करेंगे वैसा ही हमे प्राप्त होगा। परिवार में सुख शांति चाहते है तो गम खाना व सहनशीलता सीख ले। उन्होंने कहा कि बेटियों की गलती छुपाने ओर बहु की गलती सबको बताने से परिवार में सुख का वातावरण नहीं बन सकता। आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि जब परिवार टूटता है तो कलेजा बिखर जाता है। सासु ओर बहु हमेशा ध्यान रखे कभी एक-दूसरे की आंख में आंसू आने का कारण न बने। बहु अपना घर छोड़कर आपके घर में आती है तो उसे हमेशा यह अहसास कराए कि अब ये घर उसी का है। अपनी बेटी को कभी सास-बहु के रिश्ते के बीच में न आने दे। बेटियों को भी चाहिए कि वह कभी भाभी व मां के रिश्ते में दरार नहीं डाले। ऐसा करने वाली बेटियां सोच ले भाई-भाभी से बनाकर नहीं रखा तो भविष्य में उनके लिए पीहर खत्म हो जाएगा। बहु भी ध्यान रखे कभी पीहर वाली मां को सास के साथ अपने रिश्ते के बीच में न आने दे। मां को कभी ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसकी विवाहित बेटी के पारिवारिक जीवन में विष घुल जाए। हम वक्त के अनुरूप आचरण करना सीख लेेंगे तो परिवार टूटने से बच जाएंगे। संस्कारवान बहु पूरे परिवार का कल्याण कर सकती है।

कभी नहीं टूटने दे सम्बन्धों की मर्यादा

तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हर रिश्ते की मर्यादा अवश्य होनी चाहिए। सास-बहु को भी अपने रिश्ते की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। मर्यादा टूटने पर रिश्ते प्रभावित होते है। सास हो या बहु यदि धर्म से जुड़ी रहेंगी तो रिश्तों में मधुरता रहेगी। उन्होंने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए श्रावक के चौथे व्रत ब्रह्ाचर्य के बारे में समझाते कहा कि हम श्रावक-श्राविका तभी बन पाएंगे जब 12 व्रत की पालना करेंगे। साध्वीश्री ने कहा कि पेट भर सकता है लेकिन छेद वाली पेटी नहीं भर सकती। हम पेट भरने के लिए नहीं पेटी भरने के लिए दौड़ रहे है। हम भविष्य की चिंता में घुल रहे है लेकिन वर्तमान कैसे सुधरेगा इस पर ध्यान नहीं दे रहे है। धर्म से जुड़ने के साथ प्रतिदिन सामायिक साधना अवश्य करनी चाहिए। नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. ने सास-बहु के रिश्तों के आधार पर गीत ‘स्वर्ग से सुंदर सपनों से प्यारा होता है परिवार’ गीत की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। छप्पन दिन की संथारा साधना के बाद देवलोकगमन हुए तेरापंथ धर्मसंघ के पूज्य संत शांति मुनिजी को श्रद्धाजंलि स्वरूप लोगस्स पाठ की आराधना की गई। धर्मसभा में विभिन्न स्थानों से पधारे अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति की ओर से किया गया। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।

कहां जा रहा समाज, दूसरी जातियों में शादी कर रहे बच्चें

साध्वी दर्शनप्रभाजी ने बेटे-बेटियों की 30-32 वर्ष की उम्र तक शादियां नहीं होने पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हमारा समाज किधर जा रहा है कभी इस पर भी चिंतन करे। यदि 30-32 वर्ष की उम्र हो गई ओर अभी भी अच्छा रिश्ता नहीं मिलने का राग अलाप रहे है तो आखिर हमारे अच्छे रिश्ते की परिभाषा क्या है। हमारे बच्चें दूसरी जातियों में शादी कर रहे है ओर हम देख रहे है। संस्कारों की कमी के कारण ऐसा हो रहा है। बच्चों को ये संकल्प व संस्कार दे कि वह परिवार की इच्छा से या अपनी पसंद से जैसे चाहे शादी करे पर जिससे भी करें वह अपने समाज की हो। अपने ही समाज में शादी के लिए प्रोत्साहित करना होगा।

लघु नाटिका के माध्यम से दी सामायिक करने की प्रेरणा

धर्मसभा में लघु नाटिका ‘संग का रंग’ के माध्यम से सभी को सामायिक आराधना करने की प्रेरणा दी गई। महासाध्वी चेतनाश्रीजी म.सा. की प्रेरणा से निशा हिंगड़ के निर्देशन में बालक आर्यन जैन और शानू जैन ने लघु नाटिका की प्रस्तुति देकर बताया कि सामायिक आराधना करने से क्या लाभ होता है ओर प्रतिदिन एक सामायिक क्यों करनी चाहिए। बच्चों के आत्मविश्वास से लबरेज प्रभावशाली अभिनय ने देखने वालों का मन जीत लिया। ‘उवसग्गहरं’ मंत्र का जाप कराया जाएगा। साध्वी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि सबसे तेज पुण्य वाले पार्श्व प्रभु सुख-संपदा के दाता है। चातुर्मास में 30 जुलाई को बच्चों को सप्त कुव्यसन त्याग कराया जाएगा। इसके माध्यम से उन्हें बताया जाएगा कि सप्त कुव्यसन क्या है ओर इसका त्याग करने से जीवन में क्या लाभ होगा। इसी तरह आगामी 6 अगस्त को दादा दादी-पोता पोती दिवस मनाया जाएगा। इस दिन दादा-दादी को अपने पौत्र-पौत्रियों के साथ स्थानक में आना है।

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