आगरा। स्वतंत्रता के नाम पर स्वच्छंदता की उड़ान भरने वाले संसारी प्राणी के सम्बन्ध में हम समझ रहे है। अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा पतन होता है जब तुम्हारे मन मे आये कि जब जो चाहूँ बस होना चाहूँ।तब विचार करना कि अब मेरे मिटने के भाव आ गए। धन आना चाहिए चाहे कैसे भी आये तो समझना तुम्हे भिखारी बनने का अभिशाप लगने वाला है। मेरे बड़ा कोई न नही हो,समझना तुम्हारे विनाश का समय आ चुका हूँ। तुम्हे कुछ भी नही सोचना है अच्छा भी नही, बुरा भी नही, शून्य पर आ जाओ। आंख बंद करो मुझे कुछ नही देखना, मुझे कुछ नही सुनना, मुझे कुछ नही करना। जैसे तुम ऐसे परिणाम पर आओगे तैसे ही तुम्हारी स्थिति इतनी विचित्र हो जाएगी कि तुम्हारे अंदर से एक अलौकिक शक्ति जागेगी। थोड़ी देर के लिए रोको, 5 मिनिट के लिए। हमारी सारी शक्तियों पर जो कुठाराघात कर रहा है ये मन, वचन और काय। जितनी जितनी हम प्रवत्ति करेगे उतनी उतनी आत्मा की शक्ति घटेगी। एक लाख मालाएं हम फेरे वो शक्ति अर्जित नही होगी और कोई दुश्मन मुझे गाली देवे और मैं समता से सुन लूँ तो 1 लाख मालाओं से ज्यादा प्रभावकारी वो है। घर से जब तुम मन्दिर आते हो तब तुम्हारे कितना बड़ा पुण्य का बिल बनता है,एक एक कदम मन्दिर की तरफ बढ़ता है उसका सातिशय पुण्य उदय में आया अर्थात खर्च हुआ तब तुम मन्दिर आ पाए। कितने जन्मों का कितना बड़ा पुण्य खर्च होता है तब भगवान का दर्शन होता है। जैसे ही तुम्हारे हाथ मे कलश आया कई जन्मों का पुण्य खर्च हो जाता है। मैं करूंगा भगवान से प्रार्थना कि तुम्हारे घर पर नौकर चाकर लग जाये लेकिन एक बात बताओ तुम्हारा काम जब तुम्हारे नौकर चाकर कर रहे है उससे जो समय बच रहा है वो समय तुम कहा लगाओगे। यदि पापों में,तो मैं भगवान से हमेशा प्रार्थना करूंगा तो मेरे भक्तों के घर कभी नौकर चाकर न लगे। दुख दूर होने के बाद तुमने क्या किया है, यदि पापों में लगाया। इसलिए तुम्हारे दुःख दूर न होवे क्योंकि तुम सदाचारी बने रहो।
संकलन-शुभम जैन ‘पृथ्वीपुर’