Wednesday, November 27, 2024

प्रमाद अवस्था से निकले बाहर, आत्मज्ञान से होगी भगवान की प्राप्ति: चेतनाजी म.सा.

रूप रजत विहार में महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचनमाला

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। हम अपने छोटे-बड़े स्वार्थों से उपर उठकर कर्मनिर्जरा का प्रयास करते रहे। कर्मो की निर्जरा होने पर ही हमारी गति सुधरेगी। आत्मज्ञान हमेशा करते रहे क्योंकि कब कैसे कहां भगवान की प्राप्ति हो जाए कोई नहीं जानता। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में मंगलवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में आयोजित नियमित चातुर्मासिक प्रवचनमाला में आगममर्मज्ञा डॉ. चेतनाजी म.सा.ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हम गहरी निद्रा में होते है तो सपने नहीं आते लेकिन अर्द्ध निद्रित अवस्था में सपने अधिक आते है। परमात्मा महावीर ने अप्रमाद अवस्था में जीवन जीया इसलिए उन्होंने साढ़े बाहर वर्ष की साधना में मात्र एक मुर्हुत (48 मिनिट) की नींद भी पूरी तरह नहीं ली जिसमें भी उन्हें सपने आए। साध्वीश्री ने कहा कि हम प्रमाद अवस्था में जीवन जी रहे है इसलिए नींद बहुत आती है। प्रमाद अवस्था से बाहर निकलने पर ही परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। परमात्मा की स्तुति के लिए निरन्तर जाप आराधना विधिपूर्वक करते रहे तो फल अवश्य प्राप्त होगा। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने जैन रामायण का वर्णन करते हुए बताया कि लंकापति रावण किष्कन्धा के राजा बालि के दरबार में अपना दूत भेजकर उसे अपनी सेवा में उपस्थित होने का संदेश देता है। राजा बलि कहता है कि मैं सौगन्ध ले चुका हूं कि देव, गुरू व धर्म को छोड़ किसी को नमस्कार नहीं करूंगा। प्रभु की कृपा हो तो कमजोर भी बलवान होता है। वह कहता है कि हमारे सम्बन्ध मित्रता के है सेवक वाले नहीं है। वह रावण के दूत को मुंह काला करके बाहर निकाल देता है। रावण इसे अपना अपमान समझता है ओर युद्ध की तैयारी शुरू कर देता है।

पाप स्थान छोड़ स्वयं को धर्मस्थान से जोड़े तो होगा कल्याण: समीक्षाप्रभाजी म.सा.

धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए श्रावक के 12 व्रतों की चर्चा करते हुए कहा कि जैन संत परम्परा में उम्र नहीं दीक्षा ही वरिष्ठता का पैमाना होता है। इसलिए गौतम स्वामी भगवान महावीर से उम्र में बड़े होने पर भी उनके शिष्य होते है। उन्होंने सुबाहुकुमार के चरित्र की चर्चा करते हुए कहा कि रूप के साथ चरित्र एवं स्वभाव भी अच्छा होना जरूरी है। हम जैसा करेंगे वैसा ही हमे मिलेगा। उन्होंने कहा कि जैन धर्म की भाषा प्राकृत है इसके बावजूद अधिकतर जैन धर्मावलम्बी इस भाषा से अनभिज्ञता रखते है। प्राकृत भाषा देवता भी समझते है। साध्वीश्री ने कहा कि पाप स्थान और धर्मस्थान का अंतर इससे समझ सकते है कि हम पाप स्थान पर जाते है तो आंखे खुली रहती है लेकिन धर्मस्थान के सात्विक व पवित्र वातावरण के कारण आंखे बंद होने लगती है। पाप स्थान बाहर देखने के लिए कहता जबकि धर्मस्थान भीतर के तरफ देखने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि जो त्याग करता है वह सर्वश्रेष्ठ है। पैसा कभी पूजनीय एवं वंदनीय नहीं बना सकता है। धर्मसभा में महासाध्वी मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया एवं युवक मण्डल मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।

सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत का जाप

रूप रजत विहार में मंगलवार सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक सर्वसुखकारी व सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन किया गया। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने ये जाप सम्पन्न कराया। इसमें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लेकर सभी तरह के शारीरिक कष्टों के दूर होने एवं सर्वकल्याण की कामना की। चातुुर्मासकाल में प्रत्येक मंगलवार को सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक इस जाप का आयोजन होगा। रविवार 23 जुलाई को रूप रजत विहार में नियमित प्रवचन के दौरान सास-बहु दिवस मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस आयोजन के लिए सास को पीली एवं बहु को लाल रंग की साड़ी पहनकर आना होगा। परिवार के लिए प्रेरणादायी इस आयोजन से अधिकाधिक सास-बहु जुड़े इसके लिए सभी को प्रयास करने चाहिए। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही हैं।

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