Monday, November 25, 2024

जिंदगी में एक धार्मिक कार्यक्रम का उत्सव जरूर मनाना: निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज

आगरा। दुनिया में तुम एक वस्तु घटा नही सकते, एक वस्तु बड़ा नही सकते।प्रकृति ने नियम लिया है कोई भी व्यक्ति किसी भी वस्तु को मिटा नही सकता, उत्पन्न भी नही कर सकता,दुनिया की गति को रोक भी नही सकता। माटी, पत्थर, आग तुमने नही बनाये है, प्रकृति ने इनको स्वतः बनाया है। अब इनको ऑक्सीजन बनाना तुम्हारा काम है प्रकृति का नही। इनसे लाभ लेना तुम्हारा काम है। तुम्हे सावधानी रखनी है कि फेफड़े ठीक रखोगे, तो हवाएं ऑक्सीजन बन जाएगी।जल बरसता है बरसता रहेगा, लेकिन जल का उपयोग हम कर ले तो यही जल जीवनदायिनी बन जायेगा, और थोड़ी सी कला और आ जाये तो भगवान का गंधोदक भी बना सकते है।

प्रकृति सदा से थी, सदा रहेगी, चाहो तो पाप कर लो और चाहो तो तुम जिनेंद्रदेव का मन्दिर बना लो। जन्म और मरण के बीच मे जिंदगी जीने के लिए शास्त्र रखे गए। नीतियां बनाई गई कि जन्म तो लेना है तुम्हे फैसला करो, गुरु से पूछो कहा जन्म लेना है,मुझे आर्यखण्ड में जन्म लेना है, उच्च कुल में जन्म लेना है,जैन कुल में जन्म लेना है। ये तुम्हारे हाथ मे है, प्रकृति के हाथ मे नही।मरना भी निश्चित है कहा मरना है,सम्मेद शिखर में मरना है, सम्मेदशिखर के रास्ते मे मरना है, महाराज के प्रवचन सुनते मरना है, प्रभु का अभिषेक करते समय मरना है, माला फेरते समय मरना है या बारात में मरना है, शराब पीते मरना है वो पसंद अपन सबकी है। जैन कुल में जन्म लेना बता रहा है कि आप अतीत के बहुत अच्छे आदमी है, इससे बड़ा कुछ हो नही सकता। जिस कुल में भगवान के अभिषेक की रोक टोक न हो, मुनिराज के आहार देने की रोक टोक न हो, मुनि बनने की रोक टोक न हो इससे बड़ा कुल दुनिया मे और कौन सा हो सकता है। जैनदर्शन में हजार पाबंदियां है लेकिन पूर्व भव में तुमने ऐसा पुण्य किया कि तुम्हारे ऊपर एक भी पाबंदी नही है। जन्म हुआ है, जैनी का नही, शुद्र का जन्म हुआ है। माँ-बाप जैन है लेकिन व्यक्ति जैन नही है।उसको धार्मिक अनुष्ठान की मनाही कर दी।तो प्रश्न उठता है कि हम जैनी शुद्र की सेवा क्यों करे तब पूज्यवर उमा स्वामी जी मुनिराज ने मनोज्ञ की सेवा कहा कि जो अभी नही है लेकिन होनहार है तो उसकी भी सेवा करके योग्य बना दो,यह भी सेवा है। पूज्यवर जिनसेन स्वामी के अनुसार शुद्र की परिभाषा जब चाहे, जो चाहे, जहाँ चाहे,जैसा चाहे मैं सबकुछ करूँ ये भाव जबतक आता है उसको शुद्र कहते है जैसे बालक क्योंकि उसको ये ही नही पता कि मुझे क्या खाना चाहिए। गन्दगी खाने के योग्य है या नही उसे नही पता, उसे शुद्र कहते है। लेकिन 8 वर्ष के पूर्ण होते ही मेरे माता-पिता, मेरे गुरु जो सोचेंगे वह होना चाहिए और वही मुझे होना चाहिए। 7 वर्ष तक मैं जो खाना चाहूँ वह खाऊंगा, लेकिन 8 वर्ष पूर्ण होते है मेरे माता-पिता मुझे जो खिलाना चाहे वह मैं खाऊंगा। कहा जाना चाहिए अपने माता-पिता से पूछता हूँ, कब खाना चाहिए, मम्मी पापा से पूछता हूँ बस यही से जैन बनने की भूमिका यही से प्रारंभ होती है। अगर तुम 7 वर्ष तक अपने बच्चों को इतना संस्कारित कर सको कि मैं तुमसे बिना पूछे किसी से लेकर कुछ खाये पीए भी न तब समझना तुम सच्चे माता-पिता हो और वो बच्चा कभी तुम्हारे कुल में कलंक नही लगाएगा। 7 वर्ष तक हर माता-पिता को वो वो चीजे नही खाना व करना चाहिए जो जो वे अपने बच्चों में नही चाहते।सावधान माता-पिता बनना कोई गुड्डे गुड़ियों का खेल नही है।।

पहला जन्म शूद्रों का जन्म, दूसरा द्विज जन्म। जैनी व्यक्ति का दो बार जन्म होता है एक बार माता पिता से और दूसरी बार जिनवाणी माता से। द्विज का अर्थ लेना दो बार जन्म।हम साधु लोग सब क्षत्रिय है क्योंकि दीक्षा के समय हम ऊपर क्षत्रिय के संस्कार होते है, हमारी कुंडली दीक्षा की चलेगी। जो व्यक्ति जिसकी खुशी मनाएगा वो उसकी जिंदगी में मुबारक होगा। जन्म की खुशी मना रहे हो जाओ कभी संसार मे जन्म लेने की परंपरा से मुक्त नही होगे। शादी की खुशी मनाते हो आज तक पुराणों में किसी राजा-महाराजा ने शादी की साल गिरह नही मनाई। आज कल दोबारा शादी करते है याद रखना दुबारा विवाह करना विधवा का प्रतीक है। जिंदगी में एक धार्मिक कार्यक्रम का उत्सव जरूर मनाना। तुमने जिंदगी में पहली बार जब जिनेंद्र भगवान का दर्शन किया था उस दिन प्रतिवर्ष टेम्पल डे (मंदिर दिवस) मनाना।
संकलन-शुभम जैन ‘पृथ्वीपुर’

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article