णमो अरहन्ताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं
अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय और मुनि यह पांच परमेष्ठी हैं यह क्रमशः ज्ञान दर्शन विशुद्धि आनंद और शक्ति के प्रतीक हैं। महामंत्र का जाप करते समय कुछ विशेष रंगों के साथ मन को जोड़ा जाता है ।तथा शरीर स्थित चेतन का अनुभव करने वाले स्थानों पर मन को एकाग्र किया जाता है। सफेद ,लाल ,पीला, हरा ,और नीला रंग १-१ मंत्र पद से संबंधित है । इन रंगों की कमी से अस्वस्थता बढ़ती है ।प्रमाद बढ़ता है । बुद्धि मंद होती है । उत्तेजना बढ़ती है। और प्रतिरोध की शक्ति क्षीण होती है ,रंगों के साथ मंत्र का जाप निश्चित रूप से कारगर सिद्ध होता है। नमस्कार महामंत्र के जाप से जीवन को सही दिशा मिलती है। सुख दुख की कल्पना में बदलाव आता है । तृप्ति की आकांक्षा समाप्त होने लगती है। जीवन का लक्ष्य बदलता है, दृष्टिकोण सही हो जाता है । संकल्प शक्ति व इच्छा शक्ति का विकास होता है। तथा चेतना आनंद एवं क्षमताओं का समन्वित जागरण होता है। बीजाक्षरों के साथ नमस्कार महामंत्र के सैकड़ों प्रयोग मिलते हैं ।अनेक आचार्य भगवन्तो ने इस महामंत्र पर अनेक ग्रंथ और मंत्र शास्त्रीय ग्रंथ लिखे हैं । ग्रह शांति, विघ्न शांति, कायोत्सर्ग पद्धति ,और वज्र पंजर आदि विभिन्न दिशाओं में इस महामंत्र का प्रयोग किया है मंत्र एक प्रतिरोधात्मक शक्ति है । मंत्र एक कवच है। मंत्र एक प्रकार की चिकित्सा है। संसार में होने वाली प्रकम्पनो से कैसे बचा जा सकता है उनके प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है?
इन प्रश्नों का उत्तर यही है कि व्यक्ति प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करें । और अगर मंत्र की भाषा में हम कहें तो कवचीकरण का विकास करना होता है। शरीर की शुद्धि करके पद्मासन अवस्था में बैठकर हाथ से योग मुद्रा धारण करके निर्मल मन को बनाकर भव्य आत्माएं स्पष्ट, गंभीर और मधुर स्वर से संपूर्ण नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करें यह उत्सर्ग विधि होती है । इस मंत्र का विधि पूर्वक प्रयोग करने से वशीकरण, उच्चाटन, क्षोभ, स्तंभन और मूर्च्छा आदि कार्यों में भी सिद्धि प्राप्त होती है । विधि युक्त जाप से क्षण मात्र में ही पर विद्या का छेदन हो जाता है। जो मन वचन काया की शुद्धि के साथ एक लाख नमस्कार मंत्र का जाप करता है वह तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन करता है ।
आचार्य भगवान्तो ने महा मंत्र की महिमा बताते हुए कहा है
पच्चधनामादि पदानां पंचपरमेष्ठीमुद्रया जापे कृते समस्तक्षु दोपद्रव नाश: कर्मक्षयश्च।
तत्र करणीकायामाद्यम्पदम् शेषाणि चत्वारि सृष्टया शंड्.वावर्त्तविधिना सकलस्य १०८ स्मरणे शाकिन्यादयो न प्रभवन्ति।।
नमस्कार महामंत्र के पांच पदों का परमेष्ठी मुद्रा के द्वारा जाप करने से सभी प्रकार के उपद्रव का नाश होता है एवं कर्मों का क्षय होता है । प्रथम पद ॐह्रीं णमो अरिहंताणं की चतुर्दल कमल की कर्णिका में स्थापना करके बाकी चार पदों की अनुक्रम से चार दलों में स्थापना करके शंखावर्त विधि से पांचों पदों के स्मरण से शाकिनी आदि का उपद्रव नहीं होता।
आत्म शुद्धि मंत्र
ॐह्रीं णमो अरिहंताणं, ॐह्रीं णमो सिद्धाणं ॐह्रीं णमो आयरियाणं
ॐह्रीं णमो उवज्झायाणं।
आत्म शुद्धि के लिए मंत्र जाप के प्रारंभ में उपरोक्त मंत्र का १००८ बार जाप करके मंत्र जाप करना चाहिए। इससे आत्म शुद्धि होगी, आत्मिक प्रबलता बढ़ेगी ,धर्म के प्रति विनय और श्रद्धा बढ़ेगी।
इन्द्राहवानन मंत्र
ॐह्रीं वज्राधिपतये ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ह्रीं श्रूं ह्रॅं:क्ष:।।
इस मंत्र का २१ बार जाप करके प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए । पश्चात इसी मंत्र से स्वयं की शिखा, उत्तरा संग, कंगन ,अंगूठी एवं कपड़े आदि सभी सामग्री को शुद्ध करें।
ॐह्रीं श्रीं वद-वद वाग्वादिन्यै नमः स्वाहा।
मंत्र से कवच की निर्मलता करें।
ॐ णमो अरिहंताणं श्रुत देवी प्रशस्त हस्ते
हूं फट् स्वाहा।।
इस मंत्र को बोलकर अपने दोनों हाथों को धूप पर रखकर निर्मल कर ले।
नहीं दे रहा है
ॐ णमो ॐह्रीं सर्वपापक्षयंकरी ज्वाला सहस्त्र प्रज्वलिते मत्पापं जहि-जहि दह-दह क्षां र्क्षीं र्क्षूं क्षौ क्ष: क्षीरधवले अमृत
संभवे बंधान बंधान ह्रूं फट् स्वाहा।।
इस मंत्र से शरीर की शुद्धि एवं हृदय की शुद्धि से मंत्र की सिद्धि हो जाती है।
ॐ ऋषभेण पवित्रेण,पवित्री कृत्य आत्मानं पुनिमहे स्वाहा
इस मंत्र से ह्रदय की शुद्धि करनी चाहिए राग द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ एवं बुरे विचारों का त्याग करना चाहिए। असत्य का भी त्याग कर देना चाहिए।
ॐ नमो भगवते झ्रों ह्रीं चन्द्रप्रभाय चन्द्र महिताय चन्द्रमूर्तये सर्वसुखप्रदायिन्यै स्वाहा।।
इस मंत्र से स्वयं के मुख्य कमल को पवित्र करें और गंभीरता एवं नमृता को धारण करें।
ॐ क्षीं महामुद्रे कपिलशिखे ह्रूं फट् स्वाहा
इस मंत्र से दोनों नेत्रों को पवित्र करें।
शेष अगले अंक में
रमेश गंगवाल