Monday, November 25, 2024

जिनवाणी के रूप में परलोक की पॉलिसी ही हमारे काम आएगी: डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.

पुण्यवानी बढ़ानी है तो किसी की धर्मसाधना में कभी अंतराय मत डालो

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। शादियों में मेहमानों के अलग-अलग रूम कल्चर से वहां भी आपस में मिलना -जुलना कम होता जा रहा है। पहले हॉल में ठहराने से आपस में परिचय भी बढ़ता था ओर स्नेह भी पनपता था। अब घटने की बजाय आपसी दूरियां बढ़ती जा रही है। परिवारों में स्नेह का वातावरण कम हो गया है। हमार स्टेण्डर्ड बढ़ता जा रहा है पर लाइफ का स्टेण्डर्ड नीचे जा रहा है। याद रखे जब तक पुण्यवानी है धन का साथ है उसके जाते ही धन को विदा होते हुए भी देर नहीं लगेगी। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में बुधवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या मरूधरा ज्योति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में नियमित चातुर्मासिक प्रवचनमाला में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमे पुण्यवानी बढ़ानी है तो किसी की धर्मसाधना में कभी अंतराय मत डालो। आप दूसरें के रोड़े डालेंगे तो आपके भी काम में रोडे अवश्य आएंगे। इस लोक की पॉलिसी आपके बच्चों के काम आएगी लेकिन परलोक में तो जिनवाणी की पॉलिसी ही काम आएगी। साध्वीश्री ने कहा कि आप कितनी भी पॉलिसी करा ले संतान का भाग्य, पुण्यवानी व कर्म को नहीं बदल सकते। इसलिए अभी भी संभल जाए और धर्म साधना से स्वयं को जोड़ ले। गुरू आपको समझाते भी है, सावधान भी करते है ओर समस्या का समाधान भी देते है। दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी आत्म उत्थान की परम सीढ़ी है। स्थानक आने से आठों कर्मो की निर्जरा होती है। गुरू दर्शन करने पर धर्म की साधना के साथ जीवन जीने की कला का भी ज्ञान होगा। इससे हमारी सोच, विचार, आचरण,व्यवहार एवं ह्दय में परिवर्तन होगा। गुरू दर्शन करने सपरिवार आने पर परिवार में अशांति व क्लेश का वातावरण समाप्त होगा। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने जैन रामायण के तहत बताया कि किस तरह रावण के जन्म से पूर्व उसकी माता केतकी को स्वप्न में सिंह नजर आया। पूरे राज्य में राक्षसी प्रवृतियां पनपने लगी। इसके बाद समय आने पर रावण का जन्म हुआ। शुरू में बच्चे का नाम दशमुख रखा गया जिसे बाद में दशानन के नाम से जाना गया। उसने जो 9 माणक का हार पहना उसमें 9 मुख थे और एक मुख स्वयं का होने से उसे दशमुख कहा गया था। रावण के बाद कुंभकर्ण, शूपर्णखा व विभीषण का भी जन्म हुआ। साध्वीश्री ने जिनवाणी का महत्व बताते हुए कहा कि इसे श्रवण करने का अवसर जीवन में बार-बार नहीं मिलता। पुण्यवानी से ही धर्म का अवसर मिलता है। धर्म ध्यान का अवसर चूक जाने पर पछताने के सिवाए कोई चारा नहीं रहता है। धर्म साधना कर हम जीवन को सफल बना सकते है।

अणुव्रत स्वीकार किए बिना नहीं बन सकते श्रावक-श्राविका

तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह सुबाहुकुमार भगवान महावीर की जिनवाणी का श्रवण कर रहे है एवं जिनवाणी के प्रभाव से श्रावक के 12 व्रत अंगीकार कर लेते है। उन्होंने कहा कि जिस तरह महाव्रत अंगीकार किए बिना संत-साध्वी नहीं बन सकते उसी तरह बिना व्रत अंगीकार किए श्रावक-श्राविका नहीं हो सकते। अणुव्रत धारण करके ही हम स्वयं को श्रावक-श्राविका कह सकते है। साध्वीश्री ने कहा कि गति,जाति, इन्द्रियां सभी की एक्सापयरी डेट तय है इसलिए बिना किसी इंतजार के धर्म आराधना में जुट जाओ। पति-पत्नी एक-दूसरे को धर्म से जोड़ने में सहायक बने तभी उन्हें धर्मजोड़ा कहा जा सकता है। धर्म करने पर जीवन में शांति आती है तनाव खत्म होता है ओर हम सुख की नींद सो सकते है। सुख में नींद आती है ओर दुःख में आ रही नींद भी उड़ जाती है। जिनवाणी श्रवण का लाभ अवश्य मिलता है ओर धर्म ही है जो हमे सुख प्रदान करता है। आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने गीत प्रस्तुत किया। धर्मसभा में आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा.,एवं नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।

पंचरगी एकासन की आराधना जारी

महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में पचरंगी एकासन की आराधना के तहत बुधवार से पांच श्राविकाओं ने तीन-तीन एकासन की तपस्या शुरू की। इसके तहत पहले ओर दूसरे दिन पांच-पांच श्राविकाओं ने पांच ओर चार एकासन के प्रत्याख्यान लिए थे। इसी तरह पांच-पांच श्राविकाओं द्वारा दो एवं एक एकासन किए जाएंगे। इस आराधना के तहत 25 श्राविकाओं द्वारा कुल 75 एकासन होंगे। चातुर्मास में प्रतिदिन उपवास, आयम्बिल व एकासन तप की लड़ी भी चल रही है। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है।
निलेश कांठेड़, मीडिया समन्वयक

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