Sunday, September 22, 2024

राज लिप्सा नहीं छोड़ने पर जाएंगे नरक में, राजा प्रजा का पोषण की बजाय कर रहे शोषण: इन्दुप्रभाजी म.सा.

हमारे पाप और पुण्य ही साथ जाएंगे बाकी सब यही रह जाएंगे: डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा.

सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। राजा का प्रथम कर्तव्य प्रजा की रक्षा व देखभाल करना होता है। उनके लिए देश सर्वोच्च होना चाहिए। पहले राजा प्रजापालक होते थे ओर प्रजा को पुत्र समान मानते हुए देखभाल करते थे लेकिन समय बदला ओर अब राजा द्वारा प्रजा का शोषण किया जाता है। पहले भामाशाह जैसे मंत्री होते थे लेकिन अब राजा से लेकर मंत्री तक सभी शोषण करते है। राक्षसी प्रवृति बढ़ने से अब प्रजा को फायदा देने के बजाय सताने का कार्य अधिक होता है। प्रजा का पोषण करने की बजाय खाने की भावना अधिक रहती है। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में मंगलवार को नियमित चातुर्मासिक प्रवचनमाला में मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या मरूधरा ज्योति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने जैन रामायण के तहत राजा के गुणों के बारे में चर्चा करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जो राजा राजलिप्सा में लिप्त होता है वह नरक में ओर जो छोड़ता है वह मोक्ष में जाता है। आगमों में ऐसे कई राजाओं के उदाहरण है। राजा को भी समय आने पर राज लिप्सा छोड़ देनी चाहिए। जो सैनिक राष्ट्र रक्षा के लिए तैनात रहते है वह भी उनका धर्म है। उन्होंने रामायण का वर्णन करते हुए कहा कि दसवें तीर्थंकर शीतलनाथजी के समय कीर्तिधवल नामक प्रजापालक राजा का राज्य लंका में था। साध्वीश्री ने जिनवाणी का महत्व बताते हुए कहा कि इसे श्रवण करने से आदि,व्याधि, उपाधि मिटकर समाधि की ओर प्रस्थान करते है। जिनवाणी सुनने से यह भव ओर परभव दोनों सुधर जाएंगे। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जिनवाणी कहे या आगमवाणी कुछ भी नाम दे लेकिन इससे महान कोई दूसरी वाणी नहीं है। समय कभी किसी का इन्तजार नहीं करता इसलिए जिनवाणी श्रवण का ये अवसर भी दुबारा नहीं आएंगा। जोे अभी किसी कारण नहीं आ रहे उन्हें भी इससे जोड़ने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि आगम में हर समस्या का समाधान है और आगम के दर्शन करने से भी पुण्यार्जन होता है। उन्होंने कहा कि हमारे पाप और पुण्य ही साथ जाएंगे बाकी सब यही रह जाएंगे। ऐसे में हमारे कर्म ऐसे है जो पाप को खत्म कर पुण्य को बढ़ाए। मेरा है जो मेरा ओर तेरा है जो भी मेरा ऐसी बात करने वाले दुर्योधन के समान राक्षसी कर्म करने वाले होते है जिसका नाम भी आज कोई नहीं रखना चाहता। साध्वीश्री ने कहा कि जिसका धर्म सहायक होता है उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ओर जीरो से हीरो हो जाता ओर जो पाप करते है वह हीरो से जीरो हो जाते है। हमेशा किसी पर दोषारोपण करने की बजाय भाव शुद्ध रखने चाहिए। भाव श्रेष्ठ होने पर केवल ज्ञान की प्राप्ति भी हो सकती है।

घर आए संतों का दर्शन नहीं करने पर पाप कर्म का उदय

तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह सुबाहुकुमार का 500 कन्याओं के साथ विवाह होता है। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके नगर में भगवान महावीर का आगमन होता है तो सुबाहुकुमार उनके दर्शन के लिए पहुंच जाता है। उन्होंने कहा कि पापी आत्मा को धर्म नहीं सुहाता। घर में आए संत के जो दर्शन नहीं करते उनके पाप कर्म का उदय हो जाता है। जब तक पाप का उदय रहता है लाख कोशिश कर ले धर्मज्ञान नहीं कर सकते। जिनवाणी सुनने से पाप कर्मों का क्षय होता है। आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने गीत ‘मैं गुरूणी के चरणों की धूल’ प्रस्तुत किया। धर्मसभा में आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा.,एवं नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हों

सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत का जाप

रूप रजत विहार में मंगलवार सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक सर्वसुखकारी व सर्वव्याधि निवारक घण्टाकर्ण महावीर स्रोत जाप का आयोजन किया गया। तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने ये जाप सम्पन्न कराया। इसमें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लेकर सभी तरह के शारीरिक कष्टों के दूर होने एवं सर्वकल्याण की कामना की। चातुुर्मासकाल में प्रत्येक मंगलवार को सुबह 8.30 से 9.15 बजे तक इस जाप का आयोजन होगा। महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में पचरंगी एकासन की आराधना के तहत मंगलवार से चार श्राविकाओं ने चार-चार एकासन की तपस्या शुरू की। इसके तहत पहले दिन पांच श्राविकाओं ने पांच-पांच एकासन के प्रत्याख्यान लिए थे। इसी तरह पांच-पांच श्राविकाओं द्वारा तीन,दो एवं एक एकासन किए जाएंगे। इस आराधना के तहत 25 श्राविकाओं द्वारा कुल 75 एकासन होंगे। चातुर्मास में प्रतिदिन उपवास, आयम्बिल व एकासन तप की लड़ी भी चल रही है। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है। प्रत्येक रविवार प्रातः 8 से 8.30 बजे तक युवाओं के साथ धमचर्चा, दोपहर 1 से 2 बजे तक बाल संस्कार कक्षा एवं दोपहर 3 से 3.40 बजे तक प्रश्नमंच का आयोजन होगा।

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